________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 581 // नाणी० 2?, तिन्नि नाणा तिन्नि अ० भयणाए, 47 अप० णं भंते! ने० किं नाणी अ०?, तिन्नि नाणा नियमा तिन्नि अ० भयणाए, एवं 8 शतके जाव थणियकु / पुढविक्का जाव वणस्स० जहा एगिदिया। 48 बेंदियाणपुच्छा, दोनाणा दो अ० णियमा, एवं जाव पंचिंदियति / उद्देशक:२ आशीविषा४९ अपज० णं भंते! मणुस्सा किं नाणी अ०?, तिन्नि नाणाईभयणाए दो अन्ना० नियमा, वाणमंतरा जहा ने०, अपज्ज० जोइसियवे. धिकारः। णं तिन्नि नाणा तिन्नि अ० नियमा। 50 नो पन्ज नो अपज्ज० णं भंते! जीवा किं नाणी०?, जहा सिद्धा 5 // 51 निरयभवत्था णं भंते! सूत्रम् 319 गत्यादि जीवा किं नाणी अ०?, जहा निरयगतिया।५२ तिरियभवत्था णं भंते! जीवा किं नाणी अ?, तिन्नि नाणा तिन्नि अ० भयणाए।५३ विंशतिद्वारेषु मणुस्सभवत्थाणं. जहा सका०।५४ देवभवत्था णं भंते! जहा निरयभवत्था / अभवत्था जहा सिद्धा६॥५५ भवसिद्धिया णंभंते! | ज्ञानाज्ञान प्रश्नाः / जीवा किं नाणी.?, जहा सका०,५६ अभवसिद्धियाणं पुच्छा, गोयमा! नो नाणी अ० तिन्नि अन्नाणाई भयणाए। 57 नोभव गतीन्द्रिय कायसिद्धियानोअभवसिद्धियाणं भंते! जीवा० जहा सिद्धा७॥ 58 सन्नीणं पुच्छा जहा सइंदिया (35), असन्नी जहा बेइंदिया (28), सूक्ष्मपर्याप्तनोसन्नीनोअसन्नी जहा सिद्धा (30) ८॥सूत्रम् 319 // भवस्थ भवसिद्धि३१ निरयगइया ण मित्यादि, गत्यादिद्वाराणि चैतानि गइइंदिए य काए सुहमे पज्जत्तए भवत्थे य। भवसिद्धिए य सन्नी लद्धी कसंज्ञी-८ उवओग जोगे य॥१॥ लेसा कसाय वेए आहारे नाणगोयरे काले। अंतर अप्पाबहुयं च पज्जवा चेह दाराई॥२॥ तत्र च निरये द्वाराणि। गतिर्गमनं येषां ते निरयगतिकास्तेषाम्, इह च सम्यग्दृष्टयो मिथ्यादृष्टयो वा ज्ञानिनोऽज्ञानिनोवा ये पञ्चेन्द्रियतिर्यग्मनुष्येभ्यो नरक उत्पत्तुकामा अन्तरगतौ वर्तन्ते ते निरयगतिका विवक्षिताः, एतत्प्रयोजनत्वाद्गतिग्रहणस्येति, तिन्नि नाणाई नियम त्ति // 581 // ®गतय एकेन्द्रियादिः पृथ्वीकायादिः सूक्ष्मः पर्याप्तः भवस्थश्च भवसिद्धिकश्च सज्ञी लब्धिरुपयोगो योगश्च // 1 // लेश्या कषायः वेद आहारो ज्ञानविषयः कालोऽन्तर-3 मल्पबहुत्वं च पर्यायाश्चेह द्वाराणि // 2 //