________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 580 // ते त्र्यज्ञानिनः, एतदेव निगमयन्नाह, एवं तिन्नि अन्नाणाणि भयणाएत्ति। 28 बेइंदियाण मित्यादि, द्वीन्द्रियाः केचिज्ज्ञानिनोऽपि सास्वादनसम्यग्दर्शनभावेनापर्याप्तकावस्थायां भवन्तीत्यत उच्यते नाणीवि अन्नाणीवि त्ति // 318 // अनन्तरं जीवादिषु षड्विंशतिपदेषु ज्ञान्यज्ञानिनश्चिन्तिताः, अथ तान्येव गतीन्द्रियकायादिद्वारेषु चिन्तयन्नाह___३१ निरयगइ(ति)याणं भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी?, गोयमा! नाणीवि अन्नाणीवि, तिन्नि नाणाई नियमा तिन्नि अन्नाणाई भयणाए। 32 तिरियगइया णंभंते! जीवा किं नाणी अ०?, गोयमा! दोनाणा दो अन्नाणा नियमा। 33 मणुस्सगइया णं भंते! जीवा किं नाणी अ०?, गोयमा! तिन्नि नाणाई भयणाए दो अन्ना० नियमा, देवगतिया जहा निरयगतिया / 34 सिद्धगतिया णं भंते! जहा सिद्धा॥३५ सइंदिया णं भंते! जीवा किंनाणी अ०?, गोयमा! चत्तारिनाणाई तिन्नि अन्ना० भयणाए। 36 एगिदिया णं भंते! जीवा किंनाणी.?,जहा पुढविकाइया बेइंदियतेइंदियचउरिंदियाणंदो नाणा दो अन्नाणा नियमा।पंचिंदिया जहा सइंदिया। 37 अप्रिंदिया णंभंते! जीवा किंनाणी.?,जहा सिद्धा // 38 सकाइयाणं भंते! जीवा किं नाणी अ०?,गोयमा! पंचनाणाणी(णि) तिन्नि अन्ना० भयणाए। पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया नो नाणी अ० नियमा दुअ०, तंजहा- मतिअ० य सुयअ० य, तसकाइया जहा सकाइया / 39 अकाइयाणं भंते! जीवा किं नाणी०?, जहा सिद्धा३॥ 40 सुहुमा णं भंते! जीवा किं नाणी०? जहा पुढविका० / 41 बादराणं भंते! जीवा किं नाणी०? जहा सकाइया। 42 नोसुहुमानोबादराणं भंते! जीवा० जहा सिद्धा 4 // 43 पज्जत्ताणं भंते! जीवा किं नाणी.?,जहा सका०। 44 पज्जत्ता णं भंते ! नेरइया किं नाणी०?, तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा नियमा जहा नेरइए एवं जाव थणियकु० / पुढविका० जहा एगिदिया, एवं जाव चउरिं०।४५ पज्जत्ता णं भंते! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया किं नाणी अ०?, तिन्नि नाणा तिन्नि अ० भयणाए। मणुस्सा जहा सका। वाणमतंरा जोइसिया वेमा० जहा ने० / 46 अपज्जत्ता णं भंते! जीवा किं 8 शतके उद्देशक:२ आशीविषाधिकारः। सूत्रम् 319 गत्यादि विंशतिद्वारेषु ज्ञानाज्ञानप्रश्राः / गतीन्द्रियकायसूक्ष्मपर्याप्तभवस्थ भवसिद्धिकसंज्ञी-८ द्वाराणि। // 50