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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 1054 // गोयमा! नो नेरइयाउयंपकरेंति जाव नो देवाउयंपकरेंति / 7 परंपरोव० णभंते! ने० किं नेरइयाउयं प० जाव देवाउयं प०?, गोयमा! नो नेरइयाउयं प० तिरिक्खजोणियाउयंपिप० मणुस्साउयंपि पकरेंति नो देवाउयं पकरेंति। 8 अणंतरपरंपरअणुव० णं भंते! नेर० किं नेरइयाउयं प० पुच्छा नो नेरइयाउयंपकरेंति जाव नो देवाउयं प०, एवं जाव वेमाणिया, नवरंपंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य परंपरोव० चत्तारिवि आउयाई प०, सेसं तं चेव २॥९नेणं भंते ! किं अणंतरनिग्गया परंपरनिग्गया अनंतरपरंपरअनिग्गया?, गोयमा! नेणं अणंतरनि विजाव अणंतरपरंपरनि०वि, सेकेणटेणंजाव अणिग्गयावि?,गोयमा! जेणं ने० पढमसमयनिग्गयाते णं ने० अणंतरनि० जेणं ने अपढमसमयनि० ते णं ने परंपरनि० जेणं ने विग्गहगतिसमावन्नगा ते णं ने अणंतरपरंपरअणि०,से तेणटेणं गोयमा! जाव अणि वि, एवं जाव वेमाणिया 3 // 10 अणंतरनि० णं भंते! ने० किं नेरइयाउयंपकरेंति जाव देवाउयं प०?, गोयमा! नो नेरइयाउयं प० जाव नो देवाउयंप० / 11 परंपरनि० णं भंते! ने० किं नेरइयाउयं० पुच्छा, गोयमा! नेरइयाउयंपिप० जाव देवाउयंपि प० / 12 अणंतरपरंपरअणि णं भंते! ने० पुच्छा, गोयमा! नो नेरइयाउं प० जाव देवाउयंपि प०, एवं निरवसेसं जाव वेमाणिया 4 // 13 नेणं भंते! किं अणंतरंखेदोववन्नगा परंपरखेदोववन्नग(गा) अणंतरपरंपरखेदाणुववन्नगा?,गोयमा! नेरइया० एवं एएणं अभिलावेणंतंचेव चत्तारिदंडगा भाणियव्वा / सेवंभंते! रत्ति जाव विहरइ ।सूत्रम् ५०२॥चोद्दसमसयस्स पढमो॥१४१॥ 5 नेरइया ण मित्यादि, अणंतरोववन्नग त्ति न विद्यतेऽन्तरं समयादिव्यवधानमुपपन्न उपपाते येषां तेऽनन्तरोपपन्नकाः, परंपरोववन्नग त्ति परम्परा द्वित्रादिसमयता, उपपन्न उपपाते येषांते परम्परोपपन्नकाः, अणंतरपरंपरअणुववन्नग त्ति, अनन्तरमव्यधान परम्परंच द्विवादिसमयरूपमविद्यमानमुत्पन्नमुत्पादो येषांते तथा, एते च विग्रहगतिकाः, विग्रहगतौ हि द्विविधस्याप्युत्पादस्याविद्यमानत्वादिति // 6 अथानन्तरोपपन्नादीनाश्रित्यायुर्बन्धमभिधातुमाह, अणंतरे त्यादि, इह चानन्तरोपपन्नानामनन्तर |14 शतके उद्देशकः१ चरमशब्दो| पलक्षिता|धिकारः। सूत्रम् 502 नारकानन्तरपरम्परानन्तरपरम्परोत्पन्ननिर्गमकत्वंतेषामायुबन्धादिप्रश्नाः / एवं खेदोपपन्नकत्वादि। // 1054 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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