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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 1044 // तव्वइरित्ते अजहन्न इत्यादि॥४९७ // त्रयोदशशतेऽष्टमः॥१३-८॥ ॥त्रयोदशशतके नवमोद्देशकः॥ अनन्तरोद्देशके कर्मस्थितिरुक्ता, कर्मवशाच्च वैक्रियकरणशक्तिर्भवतीति तद्वर्णनार्थो नवम उद्देशकस्तस्य चेदमादिसूत्रम् १रायगिहे जाव एवं व०- से जहानामए- केइ पुरिसे केयाघडियंगहाय गच्छेजा, एवामेव अणगारेवि भावियप्पा केयाघडियाकिच्चहत्थगएणं अप्पाणेणं उड्डे वेहासं उप्पाएज्जा?, गोयमा! हंता उप्पाएजा, 2 अणगारेणं भंते! भावि० केवतियाई पभू केयाघडियाहत्थकिच्चगयाईरूवाई विउवित्तए?, गोयमा! से जहानामए-जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे एवं जहा तइयसए पंचमुद्देसए जाव नो चेवणं संपत्तीए विउव्विंसु वा विउव्विंति वा विउव्विस्संति वा, 3 से जहानामए- केइ पुरिसे हिरन्नपेलं गहाय गच्छेज्जा एवामेव अणगारेवि भावियप्पा हिरण्णपेलहत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं सेसंतंचेव, एवं सुवन्नपेलं एवं रयण वइर० वत्थ० आभरण०, एवं वियलकिडे सुंब० चम्म० कंबल एवं अयभारं तंबभारं तउय० सीसगहिरन सुवन्न वइर०, 4 से जहानामए- वग्गुली सिया दोवि पाए उल्लंबिया 2 उईपादाअहोसिरा चिट्ठज्जा एवामेव अणगारेवि भावि० वग्गुलीकिच्चगएणं अप्पाणेणं उर्ल्ड वेहासं, एवं जन्नोवइयवत्तव्वया भा० जाव विउव्विस्संति वा, ५से जहानामए- जलोया सिया उदगंसि कायं उब्विहिया 2 गच्छेज्जा एवामेव सेसं जहा वग्गुलीए, ६से जहाणामए- बीयंबीयगसउणे सिया दोवि पाए समतुरंगेमाणे 2 ग० एवामेव सेसं जहा तंचेव, 7 से जहाणामएपक्खिविरालिए सिया रुक्खाओ रुक्खं डेवेमाणे ग० एवामेव अणगारे सेसंतंचेव, 8 से जहानामए-जीवंजीवगसउणे सिया दोवि पाए समतुरंगेमाणे 2 ग० एवामेव अणगारे सेसं तं चेव, 9 से जहाणामए-हंसे सिया तीराओ तीरं अभिरममाणे 2 ग० एवामेव 13 शतके उद्देशकः 9 अनगारवै०लब्ध्यधिकारः। सूत्रम् 498 | भावितात्मानगारस्य वैक्रियरूपसामर्थ्य घटीकागृहीत्वावल्गुलीजलौकावत्पुष्करिण्यादि| आकारकृत्वा ऽऽकाशे | गमनादि|प्रश्नाः / // 1044 / /
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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