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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 1037 // 13 शतके उद्देशकः 7 भाषाधिकारः। सूत्रम् 494-495 मन:काययोरात्मरूपत्वादि पूर्वत्वादितत्प्रकारादिप्रश्नाः / तदानीं निवृत्तत्वादितिभावः॥ 493 // अनन्तरं भाषा निरूपिता, सा च प्रायो मनः पूर्विका भवतीति मनोनिरूपणायाह ९आया भंते! मणे अन्नेमणे?, गोयमा! नो आया मणे अन्नेमणे जहा भासा तहामणेवि जाव नो अजीवाणं मणे, 10 पुव्विं भंते! मणे मणिजमाणे मणे? एवं जहेव भाषा, 11 पुव्विं भंते! मणे भिजति मणिज्जमाणे मणे भि० मणसमयवीतिकंते मणे भि.?, एवं जहेव भासा / 12 कतिविहे णं भंते ! मणे प०?, गोयमा! चउव्विहे मणे प०, तंजहा-सच्चे जाव असच्चामोसे ।।सूत्रम् 494 // 13 आया भंते! काये अन्ने काये?, गोयमा! आयावि काये अन्नेवि काये, 14 रूविं भंते! काये अरूवि(वि)काये?, पुच्छा, गोयमा! रूविपि काये अरूविपि काए, एवं एक्वेक्के पुच्छा, गोयमा! सच्चित्तेवि काये अच्चित्तेवि काए, जीवेवि काए अजिवेवि काए, जीवाणवि काए अजीवाणवि काए, 15 पुव्विं भंते! काये पुच्छा, गोयमा! पुव्विंपिकाए कायिजमाणेविकाए कायसमयवीतिकंतेवि काये, 16 पुव्विं भंते! काये भिजति पुच्छा, गोयमा! पुविंपिकाए भिजाव काए भि०॥१७ कइविहेणंभंते! काये प०?, गोयमा! सत्तविहे काये पन्नत्ते, तंजहा-ओराले ओरालियमीसए वेउव्विए वेउव्वियमीसए आहारए आहारगमीसए कम्मए / सूत्रम् 495 // 9 आया भंते! मण इत्यादि, एतत्सूत्राणि च भाषासूत्रवन्नेयानि, केवलमिह मनोद्रव्यसमुदयो मननोपकारी मन:पर्याप्तिनामकर्मोदयसम्पाद्यः, भेदश्च तेषां विदलनमात्रमिति // 494 // 13 अनन्तरं मनो निरूपितं तच्च काये सत्येव भवतीति कायनिरूपणायाह, आया भंते! काय इत्यादि, आत्मा कायः कायेन कृतस्यानुभवनात्, न ह्यन्येन कृतमन्योऽनुभवत्यकृतागमप्रसङ्गात्, अथान्य आत्मनः काय: कायैकदेशच्छेदेऽपि संवेदनस्य सम्पूर्णत्वेनाभ्युपगमादिति प्रश्नः, (ग्रन्थाग्रम् 13000) उत्तरं त्वात्माऽपि कायः कश्चित्तदव्यतिरेकात् क्षीरनीर // 1037 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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