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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 1008 // चेव 2 महावासतरा चेव 3 महापइरिकतरा चेव 4, णो तहा महापवेसणतरा चेव 1 नो आइन्नतरा चेव 2 नो आउलतरा चेव 3 अणोयणतरा चेव 4, तेसुणं नरएसुनेरतिया छट्ठीए तमाए पु० नेरइएहितो महाकम्मतरा चेव 1 महाकिरियतरा चेव 2 महासवतरा चेव 3 महावेयणतराचेव 4 नो तहा अप्पकम्मतराचेव 1 नो अप्पकिरियतरा चेव र नो अप्पासवतराचेव 3 नो अप्पवेदणतराचेव 4 अप्पड्डियतरा चेव 1 अप्पजुत्तियतरा चेव 2 नो तहा महड्डियतरा चेव 1 नो महजुइयतरा चेव / छट्ठीएणं तमाए पु. एगे पंचूणे निरयावाससयसहस्से प०, ते णं नरगा अहेसत्तमाए पु० नेरइएहितो नो तहा महत्तरा चेव महाविच्छिन्न० 4 महप्पवेसणतरा चेव आइन्न० 4 तेसुणं नरएसुणं ने अहेसत्तमाए पु० नेरइएहितो अप्पकम्मतरा चेव अप्पकिरि०४ नो तहा महाकम्मतरा चेव महाकिरिय ४महड्डियतराचेव महाजुइयतरा चेव नो तहा अप्पड्डियतराचेव अप्पजुइयतराचेवा छट्ठीएणं तमाए पुढवीए नरगा पंचमाए धूमप्पभाए पु० नरएहितो महत्तरा चेव 4 नो तहा महप्पवेसणतरा चेव 4, तेसुणं नरएसुने पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीएहितो महाकम्मतराचेव ४नो तहा अप्पकम्मतरा चेव 4 अप्पड्डियतरा चेव रनो तहा महड्डियतरा चेव 4, पंचमाए धूमप्पभाए पु० तिन्नि निरयावाससयसहस्सा प० एवं जहा छट्ठीए एवं सत्तविपुढवीओ परोप्परं भण्णंति जाव रयणप्पभंति जाव नो तहा महड्डियतरा चेव अप्पजुत्तियतरा चेव // सूत्रम् 475 // 1 कइ ण मित्यादि, इह च द्वारगाथे क्वचिद् दृश्यते, तद्यथा नेरइय 1 फास 2 पणिही 3 निरयंते 4 चेव लोयमझे य 5 / दिसिविदिसाण य पवहा 5 पवत्तणं अत्थिकाएहिं ७॥१॥अत्थी पएसफुसणा 8 ओगाहणया य जीवमोगाढा। अत्थि पएसनिसीयण बहुस्समे लोगसंठाणे॥३॥ इति , अनयोश्चार्थ उद्देशकार्थाधिगमावगम्य एवेति, 2 महंततरा चेव त्ति, आयामतः, विच्छिन्नतरा चेव त्ति विष्कम्भतः, महावासतरा चेव त्ति, अवकाशो बहूनां विवक्षितद्रव्याणामवस्थानयोग्यं क्षेत्रं महानवकाशो येषु ते 13 शतके उद्देशकः४ नरकपृथिव्यधिकारः। सूत्रम् 475 सप्तनरकपृथिवीप्रश्नः। 1. नैरयिकद्वारम्। तेषुनरकावासविस्तारादिस्वरूपसङ्ख्याजीवानांकर्मर्द्धिधुत्यादिप्रश्नाः / // 10 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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