________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 997 // निरयावाससयसहस्सा प०, ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा असंखेजवित्थडा एवं जहा रयणप्पभाए तहा सक्करप्पभाएवि, नवरं असन्नी तिसुवि गमएसु न भन्नति, सेसं तं चेव।९ वालुयप्पभाए णं पुच्छा, गोयमा! पन्नरस निरयावाससयसहस्सा प० सेसं जहा सक्करप्पभाए णाणत्तं लेसासु लेसाओ जहा पढमसए (उ०२)॥१० पंकप्पभाए पुच्छा, गोयमा! दस निरयावास०, एवं जहा सक्करप्पभाए नवरं ओहिनाणी ओहिदसणी यन उव्वट्ठति, सेसंतंचेव॥११धूमप्पभाएणंपुच्छा, गोयमा! तिन्नि निरयावाससयसहस्सा एवं जहा पंकप्पभाए॥१२ तमाए णं भंते ! पुढवीए के निरयावास. पुच्छा, गोयमा! एगे पंचूणे निरयावाससयसहस्से प०, सेसं जहा पंकप्पभाए॥१३ अहेसत्तमाए णं भंते! पु० कति अणुत्तरा महतिमहालया महानिरया प०?, गोयमा! पंच अणुत्तरा जाव अपइट्ठाणे, तेणं भंते! किं संखेजवित्थडा असंखेजवित्थडा?, गोयमा! संखेनवित्थडेय असंखेजवित्थडा य, 14 अहेसत्तमाएणं भंते! पुढवीए पंचसु अणुत्तरेसुमहतिमहालया जाव महानिरएसुसंखेजवित्थडे नरए एगसमएणं के० उव०?, एवं जहा पंकप्पभाए नवरं तिसुनाणेसुन उवव० न उव्वटुं॰, पन्नत्त(त्ता)एसुतहेव अस्थि, एवं असंखेजवित्थडेसुवि नवरं असंखेज्जा भाणियव्वा // सूत्रम् 470 // १५इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पु० तीसाए निरयावाससयसहस्सेसुसंखेजवि० नरएसु किं सम्मद्दिट्ठी नेरतिया उव० मिच्छदिट्ठी ने उव० समामिच्छदिट्ठी नेर० उव०?, गोयमा! सम्मट्ठिीवि ने उव० मिच्छादिट्ठी वि ने० उव० नो सम्मामिच्छदिट्ठी उव० / 16 इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पु० तीसाए निरयावास. संखेजवि० नरएसु किं सम्मदिट्ठी नेर० उव्वटुंति एवं चेव। 17 इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पु० तीसाए निरयावास. संखेजवित्थडा नरगा किं सम्मदिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया मिच्छादिट्ठीहिं ने अविरहिया सम्मामिच्छदिट्ठीहिं ने अविरहिया वा?, गोयमा! सम्मदिट्ठीहिवि ने अविरहिया मिच्छाद्दिट्ठीहिवि अविरहिया सम्मामिच्छादिट्ठीहिं 13 शतके उद्देशकः१ नरकपृथिव्यधिकारः। सङ्घहगाथा सूत्रम् 470 सप्तनरकपृथ्वीषुसडचातासहयातयोजननरकावासेष्वेकसमये नरकजीवोत्पाद कापोतलेश्याकृष्णपाक्षिकसंज्यादिजीवोत्पादोद्वर्तनासत्तासङ्ख्याप्रश्नाः / // 997 //