________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 996 // कायजोगी उव्वद्वृति एवं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता॥ 6 इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पु० तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएसु केवइया नेरइया प०? के काउलेस्सा जाव के० अणागारोवउत्ता प०? के० अणंतरोववन्नगा प०१? के० परंपरोववन्नगा प० 2? के० अणंतरोगाढा प० 3? के० परंपरोगाढा प० 4? के० अणंतराहारा पं०५? के परंपराहारा 6? के. अणंतरपज्जत्ता प०७? के० परंपरपज्जत्ता प०८? के. चरिमा प० 9? के० अचरिमा पं० 10?, गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पु. तीसाए निरयावास. संखेजवित्थडेसु नरएसुसं० नेरतिया प० सं० काउलेसा प० एवं जाव सं० सन्नी प०, असन्नी सिय अस्थि सिय नत्थि, जइ अत्थि ज० एक्को वा दो वा तिन्नि वा उ० सं०प०, सं० भवसिद्धी प० एवं जाव सं० परिग्गहसन्नोवउत्ता प० इत्थिवेदगा नत्थि पुरिस नत्थि संखेज्जा नपुंसग०प०, एवं कोहकसायीवि मानकसाई जहा असन्नी एवं जाव लोभक० सं० सोइंदियोवउत्ताप० एवं जाव फासिंदियो० नोइंदियो० जहा असन्नी सं० मणजोगी प० एवं जाव अणागारोवउत्ता, अणंतरोववन्नगा सिय अस्थि सिय नत्थि, जइ अस्थि जहा असन्नी, सं० परंपरोववन्न०प०, एवं जहा अणंतरोववन्नगा तहा अणंतरोगाढगा अणंतराहारगा अणंतरपज्जत्तगा परंपरोगाढगा जाव अचरिमा जहा परंपरोववन्नगा॥ 7 इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पु. तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु असंखेजवित्थडेसु एगसमएणं के० नेरइया उववजंति जाव के० अणागारोवउत्ता उव०?, गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पु० तीसाए निरयावास० असंखेन्जवित्थडेसुनरएसु एगसमएणंज एक्कोवा दो वा तीनि वाउ० असंखेज्जा ने उव०, एवं जहेव संखेजवित्थडेसु तिन्नि गमगा तहा असंखेजवित्थडेसुवि तिन्नि गमगा, नवरं असंखेज्जा भा० सेसं तं चेव जाव असंखेना अचरिमा प०, नाणत्तं लेस्सासु, लेसाओ जहा पढमसए (उ०२ प्रज्ञा०पद 17) नवरं संखेजवित्थडेसुवि असंखेजवित्थडेसुवि ओहिनाणी ओहिदंसणी य संखेज्जा उव्वट्टावेयव्वा, सेसं तं चेव // 8 सक्करप्पभाए णं भंते! पुढवीए के० निरयावास० पुच्छा, गोयमा! पणवीसं 13 शतके उद्देशकः१ नरकपृथिव्यधिकारः। सङ्कहगाथा सूत्रम् 470 सप्तनरकपृथ्वीषुसङ्ख्यातासहयातयोजननरका|वासेष्वेकसमये नरकजीवोत्पाद कापोतलेश्याकृष्णपाक्षिकसंज्यादिजीवोत्पादोद्वर्तनासत्तासङ्ख्याप्रश्नाः / // 996 //