________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 981 // वी रियाया दो वि परोप्परं भयणाए। 0 जस्स दंस० तस्स उवरिमाओ दोवि भयणाए, जस्स पुण ताओ तस्स दंस० नियमं अत्थि। जस्स चरि० तस्स वीरि नियमं अस्थि जस्स पुण वीरि० तस्स चरि० सिय अस्थि सिय नत्थि // 6 एयासिणं भंते! दवियायाणं कसायायाणंजाव वीरियायाण य कयरे 2 जाव विसेसाहिया? गोयमा! सव्वत्थोवाओ चरित्तायाओ नाणा० अणंतगुणाओकसा० अणंत जोगायाओवि० वीरिया० विसेसाहिआओ उवयोगदवियदसणायाओ तिन्निवि तुल्लाओ विसेसाहिआओ॥सूत्रम् 467 // 7 आया भंते! नाणे अन्नाणे?, गोयमा! आया सिय नाणे सिय अन्नाणे,णाणे पुण नियमं आया।८ आया भंते! नेरइयाणं नाणे, अन्ने ने० नाणे? गोयमा! आया ने सिय नाणे, सिय अन्नाणे, नाणे पुण से नियमं आया, एवं जाव थणियकुमाराणं, ९आया भंते! पुढविकाइयाणं अन्नाणे, अन्ने पुढविकाइयाणं अन्नाणे? गोयमा! आया पुढविका० नियम अन्नाणे, अन्नाणेवि नियमं आया, एवं जाव वण०, बे० ते जाव वेमाणियाणं जहा ने०।१० आया भंते! दंसणे, अन्ने दंसणे! गोयमा!, आया नियमं दंसणे दंसणेवि नियम आया।११ आया भंते! नेर० दंसणे, अन्ने ने० दंसणे?,गोयमा! आया ने नियमा दंसणे, दंसणेवि से नियमं आया एवं जाव वेमा० / निरंतरं दंडओ॥ सूत्रम् 468 // 1 कइविहा ण मिति, आय त्ति, अतति सन्ततं गच्छत्यपरापरान् स्वपरपर्यायानित्यात्मा, अथवाऽतधातोर्गमनार्थत्वेन ज्ञानार्थत्वादतति सन्ततमवगच्छत्युपयोगलक्षणत्वादित्यात्मा, प्राकृतत्वाच्च सूत्रे स्त्रीलिङ्गनिर्देशः, तस्य चोपयोगलक्षणत्वात्सामान्येनैकविधत्वेऽप्युपाधिभेदादष्टधात्वम्, तत्र दवियाय त्ति द्रव्यं त्रिकालानुगाम्युपसर्जनीकृतकषायादिपर्यायं तद्रूप आत्मा द्रव्यात्मा सर्वेषां जीवानाम्, कसायाय त्ति क्रोधादिकषाय विशिष्ट आत्मा कषायात्माऽक्षीणानुपशान्तकषायाणाम्, जोगाय त्ति योगा मनःप्रभृतिव्यापारास्तत्प्रधान आत्मा योगात्मा योगवतामेव, उवओगाय त्ति, उपयोगः-साकारानाकार 12 शतके उद्दशक:१० आत्मभेदाधिकारः। सूत्रम् 467 द्रव्यकषाययोगोपयोगज्ञानदर्शनचारित्रवीर्याष्टात्मभेदाः तेषां परस्परसम्बन्धाल्पबहुत्वप्रश्नाः। सूत्रम् 468 आत्मन ज्ञानादि स्वरूपं नै० पृ० आदिनां ज्ञानरूपत्वादिप्रश्ना : / // 981 / /