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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 964 // 12 शतके उद्देशकः६ राधिकारः। सूत्रम् 456 चन्द्रसूर्ययोरग्रमहिषीकामभोगप्रश्नाः। सुरूपः, से तेण मित्यादि, अथ तेन कारणेनोच्यते ससी तिसह श्रिया वर्त्तत इति सश्रीः तदीयदेवादीनांस्वस्य च कान्त्यादियुक्तत्वादिति, प्राकृतभाषापेक्षया च ससीति सिद्धम् // 454 // अथादित्यशब्दस्यान्वर्थाभिधानायाह 4 से केण मित्यादि, सूराईय त्ति सूरः, आदिः प्रथमो येषां ते सूरादिकाः, के? इत्याह समयाइ व त्ति समया अहोरात्रादिकालभेदानां निर्विभागा अंशाः, तथाहि, सूर्योदयमवधिं कृत्वाऽहोरात्रारम्भकः समयो गण्यत आवलिका मुहूर्तादयश्चेति,8 से तेण मित्यादि अथ तेनार्थेन सूर आदित्य इत्युच्यते, आदौ अहोरात्रसमयादीनां भव आदित्य इति व्युत्पत्तेः, त्यप्रत्ययश्चेहार्षत्वादिति // 455 // अथ तयोरेवाग्रमहिष्यादिदर्शनायाह ५चंदस्स णं भंते! जोइसिंदस्स जोइसरन्नो कति अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ जहा दसमसए जाव णो चेव णं मेहुणवत्तियं / सूरस्सवि तहेव / 6 चंदमसूरिया णं भंते! जोइसिंदा जोइसरायाणो केरिसए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणा विहरंति?, गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे पढमजोव्वणुट्ठाणबलत्थे पढमजोव्वणुट्ठाणबलट्ठाए भारियाए सद्धिं अचिरवत्तविवाहकज्जे अत्थगवेसणयाए सोलसवासविप्पवासिए सेणंतओलद्धढे कयकज्जे अणहसमग्गे पुणरवि नियगगिह हव्वमागए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए मणुन्न थालिपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाकुलं भोयणं भुत्ते समाणे तंसि तारिसगंसि वासघरंसिवन्नओ महब्बले कुमारे जाव सयणोवयारकलिए ताए तारिसियाए भारियाए सिंगारागारचारुवेसाए जाव कलियाए अणुरत्ताए अविरत्ताए मणाणुकूलाए सद्धिं इढे सद्दे फरिसे जावपंचविहे माणुस्सेए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणे विहरति, सेणं गोयमा! पुरिसे विउसमणकालसमयंसि केरिसयं सायासोक्खं पच्चणुब्भवमाणो विहरति?,ओरालं समणाउसो!, तस्सणंगोयमा! पुरिसस्स कामभोगेहितो वाणमंतराणं देवाणं अणंतगुणविसिट्ठतराए चेव कामभोगा, वाणमंतराणं देवाणं कामभोगेहितो असुरिंदवजियाणं भवणवासीणं // 964 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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