________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 922 // 1 तेण मित्यादि, एगओत्ति, एकत्र समुवागयाणं ति समायातानाम्, सहियाणं ति मिलितानाम्, समुविठ्ठाणं ति, आसनग्रहणेन सन्निसन्नाणं ति संनिहिततया निषण्णानाम्, मिहो त्ति परस्परं देवट्ठितिगहियढे त्ति देवस्थितिविषये गृहीतार्थो गृहीतपरमार्थो यः स तथा // 433 // तुंगिउद्देसए त्ति द्वितीयशतस्य पञ्चमे // 434-35-36 // एकादशशते द्वादशः॥११-१२ // एकादशं शतं समाप्तम् // 11 // एकादशशतमेवं व्याख्यातमबुद्धिनाऽपि यन्मयका। हेतुस्तत्राग्रहिता श्रीवाग्देवीप्रसादोवा // 1 // 11 शतके उद्देशक: 12 आलभिकाधिकारः। सूत्रम् 436 पुद्रलपरिवाजकस्य विभङ्गज्ञान: उ० दशसाग० देवस्थितिकथनादि प्रश्नाः / सौधर्मे वर्णसहितद्रव्यादि प्रश्नः / // इति श्रीमच्चन्द्रकुलनभोनभोमणिश्रीमदभयदेवाचार्यवर्यविहितविवरणयुतं श्रीमद्भगवतीवृत्तौ एकादशशतकं समाप्तम्॥ पुदलपरि० बोध:सिद्धिप्राप्त्यादि। // 922 //