________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 921 // जाणति पासति / तए णं तस्स पो० परिव्वा० अयमेयारूवे अन्भत्थिए जाव समुप्पज्जित्था- अत्थि णं ममं अइसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, देवलोएसुणं देवाणंज० दसवाससहस्साइंठिती प० तेण परं समयाहिया दुसमयाहिया जाव उ० असंखेजसमयाहिया उ० दससागरोवमाई ठिती प० तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य, एवं संपेहेति एवं रत्ता आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ आ० २त्ता तिदंकुंडिया जाव धाउरत्ताओ यगेण्हइ गे०२ जे० आलंणगरीजे० परिव्वायगावसहे ते. उवा० रत्ता भंडनिक्खेवं करेति भं० २त्ता आलंभियाए न० सिंघाडग जाव पहेसु अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ- अत्थिणं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, देवलोएसुणं देवाणं ज० दसवाससहस्साइंतहेव जाव वो० देवा य देवलोगा य तएणं आलंभियाए न० एएणं अभिलावेणं जहा सिवस्स तं चेव जाव से कहमेयं मन्ने एवं?,सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया, भगवं गोयमे तहेव भिक्खायरियाए तहेव बहुजणसई निसामेइ तहेव बहु० २त्ता तहेव सव्वं भाणियव्वं जाव अहं पुण गोयमा! एवं आइक्खामि एवं भासामि जाव परूवेमिदेवलोएसुणं देवाणंज दस वाससहस्साई ठिती प० तेण परं समयाहिया जाव उ० तेत्तीसंसागरोवमाइंठिती प०, तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य / 7 अत्थि णं भंते! सोहम्मे कप्पे दव्वाइंसवन्नाइंपि अवन्नाइंपि तहेव जाव हंता अत्थि, एवं ईसाणेवि, एवं जाव अच्चुए, एवं गेवेजविमाणेसु अणुत्तरविमाणेसुवि, ईसिपब्भाराएविजाव हंता अत्थि, तएणं सामहतिमहालिया जाव पडिगया,८ तए णं आलंभियाए नगरीए सिंघाडगतिय० अवसेसं जहा सिवस्स (भ०श०११ उ०९) जाव सव्वदुक्खप्पहीणे नवरं तिदंडकुंडियं जाव धाउरत्तवत्थपरिहिए परिवडियविब्भंगे आलंभियं नगरं मज्झं निग्गच्छति जाव उत्तरपुरच्छिमं दिसीभागं अवक्कमति अ०२ तिदंडकुंडियं च जहा खंदओ जाव पव्वइओ सेसंजहा सिवस्स जाव अव्वाबाहंसोक्खं अणुभवंति सासयं सिद्धा / सेवं भंते! रत्ति / / सूत्रम् 436 // 11-12 // एक्कारसमंसयं समत्तं // 11 // 11 शतके उद्देशक: 12 आलभिकाधिकारः। सूत्रम् 436 पुदलपरिवाजकस्य विभङ्गज्ञान: उ० दशसाग० देवस्थितिकथनादि प्रश्नाः / सौधर्म वर्णसहितद्रव्यादि प्रश्नः। पुद्गलपरि० बोध:सिद्धिप्राप्त्यादि। // 921 //