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________________ श्रीभगवत्यह श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 920 // नमं० २त्ता एयम8 संमं विणएणं भुजो रखामेंति / तए णं समणोवासया पसिणाई पुच्छंति पु० रत्ता अट्ठाइं परियादेयंति अ० रत्ता समणं भ० म० वं नम० वं० २त्ता जामेव दिसंपाउन्भूया तामेव दिसंपडिगया।सूत्रम् 434 // 4 भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भ० म० वं० णमं० वं० रत्ता एवं व०- पभू णं भंते! इसिभद्दपुत्ते समाणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतियं मुंडेभवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए?, गोयमा! णो तिणढे समढे, गोयमा! इसिभद्दपुत्ते समणो० बहूहिं सीलव्वयगुणवयवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासेहिं अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणंभावेमाणे बहूइंबासाइंसमणोवासगपरियागंपाउहितिब० २त्ता मासियाएसंलेहणाए अत्ताणंझूसेहितिमा० रत्ता सट्टि भत्ताई अणसणाइंछेदेहिति रत्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववजिहिति, तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता, तत्थ णं इसिभद्दपुत्तस्सवि देवस्स चत्तारि पलिओवमाइंठिती भविस्सति / 5 सेणं भंते! इसिभद्दपुत्ते देवे तातो देवलोगाओ आउक्खएणं भव० ठिइक्खएणंजाव कहिं उववजिहिति?,गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं काहेति / सेवं भंते! रत्ति भगवं गोयमे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥सूत्रम् 435 / / 6 तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयावि आलभियाओ नगरीओ संखवणाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ रत्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ / तेणं कालेणं 2 आलभिया नाम नगरी होत्था वन्नओ, तत्थ णं संखवणे णामंचेइए होत्था वन्नओ, तस्सणं संखवणस्स अदूरसामंते पोग्गले नाम परिव्वायए परिवसति रिउव्वेदजजुरवेदजावनएसु सुपरिनिट्ठिए छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ड बाहाओ जाव आयावेमाणे विहरति / तएणं तस्स पोग्गलस्स छटुंछट्टेणंजाव आयावेमाणस्स पगतिभद्दयाए जहा सिवस्स (भ०श०११ उ०९) जाव विन्भंगे नामं अन्नाणे समुप्पन्ने, सेणं तेणं विब्भंगेणं नाणेणं समुप्पन्नेणं बंभलोए कप्पे देवाणं ठितिं 11 शतके उद्देशक: 12 आलभिका|धिकारः। सूत्रम् 435 ऋषिभद्रस्यानगारसामर्थ्य गतिसिद्धि आदि श्रीगौतमस्यपना:। सूत्रम् 436 पुदलपरिव्राजकस्य विभङ्गज्ञान: 30 दशसाग०देवस्थि| तिकथनादि प्रश्नाः / सौधर्मे वर्णसहितद्रव्यादिप्रश्नः। पुदलपरि० बोध:सिद्धिप्राप्त्यादि। // 920 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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