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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 560 // 8 शतके उद्देशकः१ पुगलपरिणामाधिकारः। सूत्रम् 313 एकद्रव्यपरिणामप्रश्नः। प्रयोगपरिणतादिभेद, मनःप्रयोग परिणतादि कायप्पओगप० वा बेंदिय जाव परिणए वा पंचिंदिय जाव परि० वा, 36 जइ एगिंदिय ओरालिय सरीरकायप्पओगप० किं पुढविक्काइयएगिदिय जाव परि० जाव वणस्सइकाइयएगिदिय ओरालियसरीरकायप्पओगप० वा?, गोयमा! पुढविक्काइयएगिदियपयोग जाव परि० वा जाव वणस्सइकाइयएगिंदिय जाव परि० वा, 37 जइ पुढविकाइयएगिदियओरालियसरीर जाव परि० किं सुहुमपुढविकाइय जाव परि० बायरपुढविक्काइयएगिदिय जाव परि०?, गोयमा! सुहमपुढविक्काइयएगिदिय जाव परि० बायरपुढविक्काइय जाव परि०, 38 जइ सुहुमपुढविक्काइय जाव परि० किं पज्जत्तसुहुम पुढवि जाव परि० अपज्जत्तसुहुमपुढवी जाव परि०?, गोयमा! पजत्तसुहुमपुढविकाइय जाव परि० वा अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइय जाव परि०वा, एवं बादरावि, एवं जाव वणस्सइकाइयाणं चउक्कओ भेदो, बेइंदियतेइंदियचउरिदियाणं दुयओ भेदो पज्जत्तगाय अप० / 39 जइपंचिंदियओरालियसरीरकायप्पओगप० किं तिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरकायप्पओगप० मणुस्सपंचिंदिय जाव परि०?, गोयमा! तिरिक्खजोणिय जाव परि० वा मणुस्सपंचिंदिय जाव परि० वा, 40 जइ तिरिक्खजोणिय जाव परि० किंजलचरतिरिक्खजोणिय जाव परि० वा थलचरखहचर०, एवं चउक्कओ भेदो जाव खहचराणं / 41 जइ मणुस्सपंचिंदिय जाव परि० किं समुच्छिममणुस्सपंचिंदिय जाव परि० गब्भवक्वंतियमणुस्स जाव परि०?, गोयमा! दोसुवि, 42 जइ गब्भवतियमणुस्स जाव परि० किं पज्जत्तगब्भवक्वंतिय जाव परि० अपजत्तगब्भवक्कंतियमणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरकायप्पयोगप०?, गोयमा! पज्जत्तगब्भवक्वंतिय जाव परि० वा अपज्जत्तगन्भवक्वंतिय जाव परि० (वा) 1 / 43 जइ ओरालियमीसासरीरकायप्पओगप० किं एगिदियओरालियमीसासरीरकायप्पओगप० बेइंदियजावप० जाव पंचेंदियओरालिय जाव परि०?,गोयमा! एगिदियओरालिय एवं जहा ओरालियसरीरकायप्पयोगपरिणएणं आलावगो भणिओतहा ओरालियमीसासरीरकायप्पओगपरिणएवि आलावगोभाणियव्वो, नवरंबायरवाउक्काइय गब्भववंतिय प्रभेद सत्यादि औदारिकादिप्रभेदभेदादिप्रश्नाः / // 560 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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