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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 872 // Wएवमितिपूर्वोक्तसंहननादिद्वारनिरूपणक्रमेण सिद्धिगण्डिका सिद्धिस्वरूपप्रतिपादनपरा वाक्यपद्धतिरोपपातिकप्रसिद्धाऽध्येया, इयंच परिवसनद्वारं यावदर्थलेशतो दर्शिता, तत्परतस्त्वेवं कहिं पडिहया सिद्धा कहिं सिद्धा पइट्ठिया? इत्यादिका (द्वाविंशतिगाथा प्रकरणम्।) अथ किमन्तेयम्? इत्याह जावे त्यादि। अव्वाबाहं सोक्ख मित्यादिचेह गाथोत्तरार्द्धमधीतम्, समग्रगाथा पुनरियं निच्छिन्नसव्वदुक्खा जाइजरामरणबंधणविमुक्का। अव्वाबाहं सोक्खं अणुहंती सासयं सिद्धा // 1 // इति // 419 // एकादशशते नवमोद्देशकः॥११-९॥ ॥एकादशशतके दशम उद्देशकः॥ नवमोद्देशकस्यान्ते लोकान्ते सिद्धपरिवसनोक्तेत्यतो लोकस्वरूपमेव दशमे प्राह, तस्य चेदमादिसूत्रम् 1 रायगिहे जाव एवं वयासी- कतिविहे णं भंते! लोए पन्नत्ते?, गोयमा! चउव्विहे लोए प०, तंजहा- दव्वलोए खेत्तलोए काललोए भावलोए। २खेत्तलोएणं भंते! क० प०?, गोयमा! तिविहे प०, तंजहा- अहोलोयखेत्तलोए 1 तिरियलोयखेत्तलोए 2 उद्दलोयखेत्तलोए 3 / 3 अहोलोयखे० णंभंते! क. प०?, गोयमा! सत्तविहे प०, तंजहा- रयणप्पभापुढविअहेलोयखेत्तलोए जाव अहेसत्तमापुढविअहोलोयखे०। 4 तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते! क. प.?, गोयमा! असंखेजविहे पन्नत्ते, तंजहा- जंबुद्दीवे तिरियखेत्तलोए जाव सयंभूरमणसमुद्दे तिरियलोयखे०।५ उडलोगखेत्तलोएणं भंते! क०प०?, गोयमा! पन्नरसविहे पन्नत्ते, तंजहासोहम्मकप्पउड्डलोगखे० जाव अचुयउडलोए गेवेजविमाणउड्डलोए अणुत्तरविमाण ईसिंपन्भारपुढविउङ्कलोगखे०।६ अहोलोगखे० णं भंते! किंसंठिए प०?, गोयमा! तप्पागारसं०प०। 7 तिरियलोयखे० णं भंते! किंसंठिए प०?, गोयमा! झल्लरिसं० प०! 8 उडलोयखेत्तलोयपुच्छा उद्दमुइंगाकारसं०प०।९ लोए णं भंते! किंसंठिए प०?, गोयमा! सुपइट्ठगसं० लोए प०, तंजहा- हेट्ठा 11 शतके उद्देशक: 10 लोकाधिकारः। सूत्रम् 420 लोकस्यक्षेत्रादिअधोक्षेत्रादिभेदप्रभेदादि तेषांसंस्थानजीवरूपादि, एकाकाश प्रदेशे जीवादि, द्रव्यतोलोकादिप्रश्नाः / // 872 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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