________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ त्ति, उद्वर्त्तनाधिकारे, तत्र चेदमेवं सूत्रं मणुएसु उववजंति देवेसु उव०?, गोयमा! नो नेरइएसु उव० तिरिएसु उव० मणुएसु उव० नो देवेसु उव० उप्पलकेसरत्ताए त्ति, इह केसराणिकर्णिकायाः परितोऽवयवाः, 41 उप्पलकन्नियत्ताए त्ति, इह तुकर्णिका बीजकोशः, उप्पलथिभुगत्ताए त्ति थिभुगा च यतः पत्राणि प्रभवन्ति // 409 // एकादशशते प्रथमोद्देशकः // 11-1 // // 859 // ॥एकादशशतके द्वितीयतृतीयचतुर्थपञ्चमषष्ठसप्तमाष्टमा उद्देशकाः॥ १सालुएणं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे अणेगजीवे?, गोयमा! एगजीवे एवं उप्पलुद्देसगवत्तव्वया अपरिसेसा भाणियव्वा जाव अणंतखुत्तो, नवरं सरीरोगाहणा ज• अंगुलस्स असंखेजइभागं उ० धणुपुहत्तं, सेसं तं चेव / सेवं भंते! २त्ति / / सूत्रम् 410 // 112 // __ पलासे णं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे अणेगजीवे?, एवं उप्पलुद्देसगवत्तव्वया अपरिसेसा भाणियव्वा, नवरं सरीरोगाहणाज. अंगुलस्स असंखेजइभागं उ० गाउयपुहुत्ता, देवा एएसु चेव न उववखंति / 2 लेसासु ते णं भंते! जीवा किं कण्हलेसे नीललेसे काउलेसे०?, गोयमा! कण्हलेस्से वा नील० वा काउ० वा छव्वीसंभंगा, सेसंतं चेव / सेवं भंते! रत्ति / / सूत्रम् 411 // 11-3 // __कुंभिए णं भंते जीवे एगपत्तए किं एगजीवे अणेगजीवे?, एवं जहा पलासुद्देसए तहा भाणियव्वे, नवरं ठिती ज० अंतोमुहत्तं उ० वासपुहत्तं, सेसंतं चेव / सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 412 // 11-4 // नालिएणं भंते! एगप० किं एगजीवे अणेग०?, एवं कुंभिउद्दे० निरवसेसं भा० / सेवं भंते! रत्ति / / सूत्रम् 413 // 11-5 // पउमेणं भंते! एगप० किं एगजीवे अणेग.?, एवं उप्पलुद्दे निरवसेसा भा०। सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 414 // 11-6 // 11 शतके उद्देशका :2-8 शालूकपलाशाधधिकारः। सूत्रम् |410-411 शालूकपलाशकुंभीकानामेकनेकजीवत्वादिउत्पलवत्प्रश्नाः। सूत्रम् 412-416 कुंभीकनालिकापद्यकर्णिकानलीनानामेकनेकजीवत्वादिउत्पलवत्प्रना:। // 859 //