________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 847 // पद्यावत क्रमेण वरसिढे सयंजले वगुत्ति विमाणा 29 जहा चउत्थसए त्ति क्रमेण च तानीशानलोकपालानामिमानि, सुमणे सव्वओभद्दे / / 10 शतके वगू सुवग्गू त्ति // 406 // दशमशते पञ्चमोद्देशकः॥१०-५॥ उद्देशकः६ सुधर्मासभा धिकारः। ॥दशमशतके षष्ठोद्देशकः॥ सूत्रम् 407 पञ्चमोद्देशके देववक्तव्यतोक्ता, षष्ठे तु देवाश्रयविशेष प्रतिपादयन्नाह शक्रसुधर्मा सभा 1 कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता?, गोयमा! जंबुद्दीवे 2 मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए एवं जहा रायप्पसेणइज्जे (राजप्र०प०५९)जावपंच वडेंसगा पन्नत्ता, तंजहा- असोगवडेंसए जाव मझे सोहम्मवडेंसए, संकविमान तस्यर्द्धिसेणंसोहम्मवडेंसए महाविमाणे अद्धतेरस य जोयणसयसहस्साई आयामविक्खंभेणं, एवं जह सूरियाभेतहेवमाणं तहेव उववाओ। प्रश्नाः / सक्कस्स य अभिसेओ तहेव जह सूरियाभस्स (राजप्र०प०९७,११२)॥१॥ अलंकारअञ्चणिया तहेव जाव आयरक्खत्ति, दो सागरोवमाई ठिती।सक्केणं भंते! देविंदे देवराया के महिड्डीए जाव के महसोक्खे?, गोयमा! महिड्डीए जाव महसोक्खे, सेणं तत्थ बत्तीसाए विमाणावाससयसहस्साणं जाव विहरति एवंमहड्डीए जाव महासोक्खे सक्के देविंदे देवराया। सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 407 // 10-6 // 1 कहि ण मित्यादि, एवं जहा रायप्पसेणइज्ज(प० 59) इत्यादिकरणादेवं दृश्यं पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्डे चंदमसूरियगहगणक्खत्ततारारूवाणं बहूई जोयणाई बहूई जोयणसयाई एवं सहस्साई एवं सयसहस्साई बहूओ जोयणकोडीओ बहूओ जोयणकोडाकोडीओ उद्धं दूरं वीइवइत्ता एत्थ णं सोहम्मे नामं कप्पे पन्नत्त इत्यादि, असोगवडेंसए इह यावत्कणादिदं दृश्यं