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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 553 // ८शतके उद्देशकः१ पुद्रलपरिणामाधिकारः। सूत्रम् 310 | एकेन्द्रियप्रयोगपरिणतादिनवदण्डकप्रश्नाः / पंचिंदियपओ०। 4 एगिदियपओ० णं भंते! पोग्गला कइविहा प०?, गोयमा! पंचविहा, तंजहा- पुढविक्काइयएगिदियपयो० जाव वणस्सइकाइयएगिंदियपयो०।५ पुढविक्काइयएगिदियपओ० णं भंते! पोग्गला कइविहा प०?, गोयमा! दुविहा प०, तंजहासुहमपुढविक्काइयएगिंदियपओ० बादरपुढविक्काइयएगिदियपयो०, आउक्काइयएगिंदियपओ० एवं चेव, एवं दुपयओ (दुयओ) भेदो जाव वणस्सइकाइया य (वणस्सइकाइआण पुच्छा, गोयमा! अणेगविहा पन्नत्ता)। 6 बेइंदियपयो० णं पुच्छा, गोयमा! अणेगविहा प०, तंजहा- एवं तेइंदियचउरिंदियपओ०वि। 7 पंचिंदियपयोगपरिणयाणं पुच्छा, गोयमा! चउव्विहा प०, तंजहानेरइयपंचिंदियपयो० तिरिक्ख०, एवं मणुस्स० देवपंचिंदिय०, 8 नेरइयपंचिंदियपओग० पुच्छा, गोयमा! सत्तविहा प०, तंजहारयणप्पभापुढविनेरइयपयो वि जाव अहेसत्तमपुढविनेरइयपंचिंदियपयो वि, (तिरिक्खपंचिंदियजोणिय) तिरिक्खजोणियपंचिंदियपओ० णंपुच्छा, गोयमा! तिविहा प०, तंजहा- जलचरपंचिंदियतिरिक्खजोणिय० ९थलचरतिरिक्खजोणियपंचिंदिय० खहचरतिरिक्खपंचिंदिय०,१० जलयरतिरिक्खजोणियपओगपुच्छा, गोयमा! दुविहा प०, तंजहा-संमुच्छिमजलयर० गम्भवक्वंतियजलयर०,११थलयरतिरिक्ख० पुच्छा, गोयमा! दुविहा प०, तंजहा- चउप्पयथलयर० परिसप्पथलयर०,१२ चउप्पयथलयर० पुच्छा, गोयमा! दुविहा प०, तंजहा-संमुच्छिमचउप्पयथलयर० गब्भवक्वंतियचउप्पयथलयर०, एवं एएणं अभिलावेणं परिसप्पा दुविहा प०, तंजहा- उरपरिसप्पा य भुयपरिसप्पा य, उरपरिसप्पा दुविहा प०, तंजहा-संमुच्छा य गम्भवक्वंतिया य, एवं भुयपरिसप्पावि, एवं खहयरावि।१३मणुस्सपंचिंदियपयोगपुच्छा, गोयमा! दुविहाप०, तंजहा-संमुच्छिममणुस्स० गम्भवक्कंतियमणुस्स०। 14 देवपंचिंदियपयोगपुच्छा, गोयमा! चउव्विहा प०, तंजहा- भवणवासिदेवपंचिंदियपयोग एवं जाव वेमाणिया। 15 भवणवासिदेवपंचिंदियपुच्छा, गोयमा! दसविहा प०, तंजहा- असुरकुमारा जाव थणियकु०, एवं एएणं अभिलावेणं अट्ठविहा वाणमंतरा 8 // 553 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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