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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ / / 812 // उवा० २त्ता समणं भ० म० तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति रत्ता वंदइणमंसइ रत्ता समणं भ० म० उवसंपज्जित्ताणं विहरंति // सूत्रम् 386 // 33 तएणंसेजमाली अणगारे अन्नया कयावि(इं-ती) ताओ रोगायंकाओ विप्पमुक्के हटे (तुढे) जाए अरोए बलियसरीरे सावत्थीओ नयरीओ कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ रत्ता पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जे० चंपा न० जे० पुन्नभद्दे चेइए जे० समणे भ० म० ते. उवा० रत्ता समणस्स भ० म० अदूरसामंते ठिच्चा समणं भ० म० एवं व०- जहा णं देवाणुप्पियाणं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्था भवेत्ता छउमत्थावक्कमणेणं अवक्वंता णो खलु अहं तहा(चेव)छउमत्थे भवित्ता छउमत्थावक्कमणेणं अवक्कमिए, अहन्नं उप्पन्नणाणदसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलिअवक्कमणेणं अवक्कमिए(क्वंते), 34 तएणं भगवंगोयमे जमालिं अण एवंव०-णोखलु जमाली! केवलिस्सणाणे वा दंसणेवासेलंसि वा थंभंसि वा थूभंसिवा आवरिजइ वा णिवारिज्जइवा, जइणं तुमंजमाली! उप्पन्नणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलिअवकणमेणं अवक्वंते तो(ता)णं इमाइंदो वागरणाई वागरेहि-सासए लोए जमाली! असासए लोए जमाली?, सासए जीवे जमाली! असासए जीवे जमाली?, तए णं से ज० अण. भगवया गोयमेणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए जाव क्लुससमावन्ने जाए यावि होत्था, णो संचाएति भगवओ गोयमस्स किंचिवि पमोक्खमाइक्खित्तए तुसिणीए संचिट्ठइ, 35 जमालीति समणे भगवं महावीरे जमालिं अण एवं व०- अत्थि णं जमाली ममं बहवे अंतेवासी समणा नि० छउमत्था जेणं एवं वागरणं वागरि(रे)त्तए जहाणं अहं नो चेव णं एयप्पगारं भासं भासित्तए जहाणं तुम,सासए लोए जमाली! जन्न(नं-जंणं) कया(दा)वि(इ) णासिण कयाविण भवति ण कदावि ण भविस्सइ भुविं च भवइ य भविस्सइ य धुवे णितिए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे, असासए लोए जमाली! ९शतके उद्देशक: 33 ब्राह्मणकुण्डग्रामाधिकारः। सूत्रम् 387 जमाले: प्रभुसमीपमागमनम्, कवल्यभिमानम्, गौतमप्रश्ननिरुत्तरता मिथ्याऽभिनिवेशाप्रतिक्रान्तः लान्तके किल्बिषिके उत्पादादि। // 812 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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