________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 791 // तहत्ताणा(ए) विणएणं वयणं पडिसुणेइ रत्ता सुरभिणा गंधोदएणं हत्थपादे पक्खालेइ सुरभिणा 2 सुद्धाए अट्ठपडलाए पोत्तीए मुहं बंधइ मुहं बंधित्ता जमालिस्स खत्तियकुमारस्स परेणंजत्तेणंचउरंगुलवज्जे निक्खमणपयोगे(पाओग्गे) अग्गकेसे कप्पइ / तएशंसा जमाल(लि)स्स खत्ति माया हंसलक्खणेणं पड(डि)साडएणं अग्गकेसे पडिच्छइ अ०प०त्ता सुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेइ सु० गं०प०त्ता अग्गेहिं व(चम)रेहिं गंधेहिं मल्लेहिं अञ्चेति रत्ता सुद्धवत्थेणं बंधेइ सुद्धवत्थेणं बंधित्ता रयणकरंडगंसि पक्खिवति रत्ता हार-वारिधारा-सिंदुवार-छिन्नमुत्तावलिप्पगासाइंसुयवियोगदूसहाई अंसूई विणिम्मुयमाणी 2 एवं व०- एसणं अम्हं जमालिस्स खत्ति बहूसु तिहीसुयपव्वणीसुय उस्सवेसुयजन्नेसुय छणेसुय अपच्छिमे दरिसणे भविस्सतीतिकट्ठ ओ(ऊ)सीसगमूले ठवेति, 25 तए णं तस्स जमालिस्स खत्ति० अम्मापियरो दोच्चं(पि) उत्तरावक्कमणं सीहासणं रयाति रत्ता दोचंपि जमालिस्स खत्ति० सीयापीयएहिं कलसेहिं नाण्हें(ण्हावें)ति सीया(सेया) पीयएहिं कलसेहिं नाण्हेत्ता(ण्हावित्ता) पम्हसुकुमालाए सुरभिए गंधकासाइए गायाइंलूहेंति सु० गंध० गा० लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाइं अणुलिंपन्ति गा० अ०त्ता नासानिस्सासवायवोमंचक्खुहरं वन्नफरिसजुत्तं हयलालापेलवातिरेगंधवलं कणगखचियंतकम्ममहरिहं हंसलक्खणपडसाडगंपरिहिंति रत्ता हारं पिणखें (णिहें)ति रत्ता अद्धहारं पिणखेंति रत्ता एवं जहा सूरियाभस्स अलंकारो तहेव जाव चित्तं रयणसंकडुक्कडं मउडं पिणद्धति, किं बहुणा?, गंथिमवेढिमपूरिम-संघातिमेणं चउव्विहेणं मल्लेणं कप्परुक्खगं पिव अलंकियविभूसियं करेंति / तए णं से जमालिस्स खत्ति० पिया को पुरिसे सद्दावेइ रत्ता एवं व०- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अणेगखंभसयसन्निविट्ठ लीलट्ठियसालभंजियागं जहा रायप्पसेणइज्जे विमाणवन्नओजाव मणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्तं पुरिससहस्सवाहणीयं सीयं उवट्ठवेह रत्ता मम एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह, तएणं ते को पुरिसा जाव पञ्चप्पिणंति / तए णं से जमालीखत्तियकुमारे 6 केसालंकारेणं वत्थालंकारेणं मल्लालंकारेणं ९शतके उद्देशक: 33 ब्राह्मणकुण्डग्रामाधिकारः। सूत्रम् 385 जमालीनिष्क्रमणमहोत्सवः। अभिषेकरजोहरणाऽऽनयनानकेशदूरीकरणस्नानवस्त्रशिबिकादिऋद्धिसहगमनं शिष्यदानलोचदीक्षादि। // 791 //