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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ / / 773 // तएणं से जमालियखत्तियकुमारे कंचुइज्जपुरिसस्स अंतिए एयमढेसोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ० कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ को पुरिसे सद्दावइत्ता एवं व०-खिप्पामेव भो देवाणु०! चाउग्घंटं आसरहंजुत्तामेव उवट्ठवेह उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह, तएणं ते को पुरिसा जमालिणाखत्तियकुमारेणं एवं वुत्ता समाणा जाव पञ्चप्पिणंति, ९तएणं से जमालियखत्तियकुमारे जे० मजणघरे ते० उवाग० ते० उवा त्ता हाए कयबलिकम्मे जहा उववाइए परिसावन्नओ तहा भाणियव्वं जाव चंदणाकिन्नगाव्वयसरीरे सव्वालंकारविभूसिए मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ मज्जण पडित्ता जे० बाहिरिया उवट्ठाणसाला जे. चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवा० ते. उवा-त्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरूहेइ चाउ० रत्ता सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं महया भडचडकरपहकरवंदपरिक्खित्ते खत्तियकुंडग्गामं नगरं मझम०नि०नि० ताजे० माहणकुंडग्गामे न० जे० बहुसालए चइए तेणेव उवा० ते. उवा०त्ता तुरए निगिण्हेइ तुरए रत्ता रहं ठवेइ रहं ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहति रहा० रत्ता पुप्फतंबोलाऽऽउहमादीयं वाहणाओ य विसजेइ रत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ उत्तरासंगं करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइन्भूए अंजलिमउलियहत्थे जे० समणे भ० म० ते. उवा० ते. उवा०त्ता समणं भ० म० तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ 2 तिक्खुत्तो रत्ता जाव तिविहाए पजुवासणाए पजुवासइ / तए णं समणे भ० म० जमालिस्स खत्तियकुमारस्स, तीसे यमहतिमहालियाए इसिजावधम्मकहा जाव परिसा पडिगया, 10 तएणं ते जमालीखत्तियकु. समणस्स भ०म० अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठ जाव उठाए उट्टेइ उठाए उठूत्ता समणं भ० म० तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता एवं व०- सद्दहामिणं भंते! निग्गंथं पावयणं पत्तयामि णं भंते! नि० पा०रोएमिणं भंते! नि० पा० अब्भुढेमि णं भंते! नि० पा० एवमेयं भंते! तहमेयं भंते! अविहतमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते! जाव से जहेयं तुज्झे वदह, जं नवरं देवाणुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि। तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अ(आ)गाराओ अणगारियं पव्वया(जा)मि, अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं // सूत्रम् ९शतके उद्देशक: 33 ब्राह्मणकुण्डग्रामाधिकारः। सूत्रम् 383 ब्राह्मणकुण्डग्रामपश्चिमे क्षत्रियकुंड्यामे जमालिकुमारः। प्रभोळग्रामे आगमनं पर्युपासना धर्मोपदेशप्रतिबोधादि। // 773 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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