________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 772 // वासारत्त-सरद-हेमंत-वसंत-गिम्हपजंते छप्पि उऊजहा विभवेणंमाणमाणे 2 कालंगालेमाणे इढे सद्दफरिसरसरूवगंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणे विहरइ। तएणंखत्तियकुंडग्गामे नगरे सिंघाडगतियचउक्कचच्चरजाव बहुजणसद्देइ वा जहा उववाइए जाव एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ- एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव सव्वन्नू सव्वदरिसी माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं जाव विहरइ, तं महप्फलं खलु देवाणु०! तहारूवाणं अरहताणं भगवंताणं जहा उववाइए जाव एगाभिमुहे खत्तियकुंडग्गामं नगरंमज्झमझेणं निग्गच्छंति नित्ता जेणेव माहणकुंडग्गामे नगरे जे० बहुसालए चेइए एवं जहा उववाइए जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति। तएणं तस्स जमालिस्स खत्तियकु० तं महया जणसई वाजाव जणसन्निवार्यवासुणमाणस्स वा पासमाणस्स वा अयमेयारूवे अज्झथिएजाव समुप्पजित्था-किन्नं अन्ज खत्तियकुंडग्गामे नगरे इंदमहेइ वा खंदमहेइ वा मुगुंदमहेइ वा णागमहेइ वा जक्खमहेइ वा भूयमहेइ वा कूवमहेइ वा तडागमहेइ वा नईमहेइ वा दहमहेइ वा पव्वयमहेइ वा रुक्खमहेइ वा चेइयमहेइ वा थूभमहेइ वा जण्णं एए बहवे उग्गा भोगा राइन्ना इक्खागाणाया कोरव्वा खत्तियाखत्तियपुत्ता भडा भडपुत्ता जहा उववाइए जाव सत्थवाहप्पभिइएण्हाया कयबलिकम्मा जहा उववाइए जाव निग्गच्छंति?, एवं संपेहेइ एवं संपेहित्ता कंचुइज्जपुरिसंसद्दावेति कंचु० 2 एवं वयासी-किण्हं देवाणुप्पिया! अजखत्तियकुंडग्गामे नगरे इंदमहेइ वा जाव निग्गच्छंति?, तएणं से कंचुइज्जपुरिसे जमालिणाखत्तियकुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्टे समणस्स भ० म० आगमणगहियविणिच्छए करयल जमालिं खत्तियकु० जएणं विजएणं वद्धावेइ वद्धावेत्ता एवं व०- णो खलु देवाणु०! अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नयरे इंदमहेइ वा जाव निग्गच्छइ, एवं खलु देवाणु०! अज्ज समणे भ० म० जाव सव्वन्नू सव्वदरिसी माहणकुंडगामस्स न० बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं जाव विहरति, तएणं एए बहवे उग्गा भोगा जाव अप्पेगइया वंदणवत्तियं जाव निग्गच्छंति / ९शतके उद्देशक: 33 ब्राह्मणकुण्डग्रामाधिकारः। सूत्रम् 383 ब्राह्मणकुण्डग्रामपश्चिमे क्षत्रियकुंड्यामे जमालिकुमारः। प्रभोळग्रामे आगमन पर्युपासना धर्मोपदेशप्रतिबोधादि। // 772 //