________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 740 // अहेसत्त होज्जा 15 अ० एगे रयण० एगे वालुय० एगे तमाए एगे अहेसत्त होन्जा 16 अ० एगे रयण० एगे पंक० एगे धूम० एगे तमाए होज्जा 17 अ० एगे रयण एगे पंक एगे धूम० एगे अहेसत्त होज्जा 18 अ० एगे रयण० एगे पंक० एगे तमाए एगे अहेसत्त होज्जा 19 अ० एगे रयण० एगे धूम० एगे तमाए एगे अहेसत्त० होज्जा 20 अहवा एगे सक्कर० एगेवालुय० एगे पंक० एगे धूम होज्जा 21 एवं जहा रयण उवरिमाओपुढवीओ (संचारिया) चारियाओतहासकरप्पभाएवि उवरिमाओचारि(उच्चारे)यव्वाओजाव अहवा एगे सक्कर० एगे धूम० एगे तमाए एगे अहेसत्त० होज्जा 30 अ० एगे वालुय० एगे पंक० एगे धूम० एगे तमाए होज्जा 31 अहवा एगे वालुय० एगे पंक० एगे धूम० एगे अहेसत्त होज्जा 32 अहवा एगे वालुय० एगे पंक० एगे तमाए एगे अहेसत्त होज्जा 33 अहवा एगे वालुय० एगे धूम० एगे तमाए एगे अहेसत्त० होज्जा 34 अहवा एगे पंक० एगे धूम० एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा 35 // सूत्रम् 373 (अपूर्णम्)॥ 9 कइविहे ण मित्यादि, 10 पवेसणए त्ति गत्यन्तरादुद्वृत्तस्य विजातीयगतौ जीवस्य प्रवेशनमुत्पाद इत्यर्थः, 11 एगे भंते! नेरइए इत्यादौ सप्त विकल्पाः / 12 दो भंते! नेरइए इत्यादावष्टाविंशतिर्विकल्पास्तत्र रत्नप्रभाद्याः सप्तापि पृथिवीक्रमेण पट्टादौ व्यवस्थाप्याक्षसञ्चारणया पृथिवीनामेकत्वद्विकसंयोगाभ्यां तेऽवसेयाः, तत्रैकैकपृथिव्यां नारकद्वयोत्पत्तिलक्षणैकत्वे सप्त विकल्पाः, पृथिवीद्वये नारकद्वयोत्पत्तिलक्षणद्विकयोगे त्वेकविंशतिरित्येवमष्टाविंशतिः, एवं एक्केक्का पुढवी छड्डेयव्वे ति अक्षसञ्चारणापेक्षयेदमुक्तमिति // 13 तिन्नि भंते! नेरइए त्यादौ चतुरशीतिर्विकल्पाः, तथाहि, पृथिवीनामेकत्वे सप्त विकल्पाः, द्विकसंयोगे तु तासामेको द्वावित्यनेन नारकोत्पादविकल्पेन रत्नप्रभया सह शेषाभिः क्रमेण चारिताभिर्लब्धाः षड्, द्वावेक इत्यनेनापि नारकोत्पादविकल्पेन षडेव, तदेते द्वादश 12, एवं शर्कराप्रभया पञ्च पञ्चेति दश, एवं वालुकाप्रभयाऽष्टौ पङ्कप्रभया ९शतके उद्देशकः 32 गानेयाधिकारः। सूत्रम् 373 (अपूर्णम्) प्रवेशनकप्रकारप्रश्नः। नैरयिकप्रवेशनके, एकद्वित्रिचतुर्नारकजीवप्रवेशनके विविधभङ्गप्रश्नाः / // 740 //