________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 737 // 1 ते ण मित्यादि, 2 संतरं ति समयादिकालापेक्षया सविच्छेदम्, तत्र चैकेन्द्रियाणामनुसमयमुत्पादान्निरन्तरत्वमन्येषां तूत्पादे विरहस्यापि भावात् सान्तरत्वं निरन्तरत्वं च वाच्यमिति // 371 / / 5 उत्पन्नानांच सतामुद्वर्त्तना भवतीत्यतस्तां निरूपयन्नाह संतरं भंते! नेरइया उवटुंती त्यादि // 372 // उद्वृत्तानांच केषाञ्चिद्गत्यन्तरे प्रवेशनं भवतीत्यतस्तन्निरूपणायाह ९कइविहेणं भंते! पवेसणए पन्नत्ते?, गंगेया! चउविहे पवेसणए प० तंजहा-नेरइयपवेसणए तिरिय(क्ख)जोणियप० मणुस्सप० देव०। 10 नेरइयपवेसणए णं भंते! कइविहे प०?, गंगेया! सत्तविहे प०, तंजहा- रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए जाव अहेसत्तमापुढविनेरइयप०॥११एगेणं भंते! नेरइए नेरइयपवेसणएणं पविसणमाणे किं रयणप्पभाए होजा सक्करप्पभाए होज्जाजाव अहेसत्तमाए होजा?, गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जाजाव अहेसत्त० वा होज्जा / 12 दो भंते! ने० नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा किं रयण होजा जाव अहेसत्त होजा?, गंगेया! रयण वा होजा जाव अहेसत्त० वा होज्जा, अहवा एगे रयण एगे सक्करप्पभाए होज्जा अ० एगे रयण एगे वालुयप्पभाए होज्जा जाव एगे रयण एगे अहेसत्त होजा, अ० एगे सक्कर० एगेवालुय होजा जाव अहवाएगे सक्कर० एगे अहेसत्त होजा, अ० एगे वालुय एगे पंक० होजा एवं जाव अ० एगे वालुय० एगे अहेसत्त० होज्जा, एवं एक्वेक्का पुढवी छड्डेयव्वा जाव अहवा एगे तमाए एगे अहेसत्त० होज्जा // 13 तिन्नि भंते! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविस० किं रयणप्पभाए होजा जाव अहेसत्त० होजा?, गंगेया! रयण वा होज्जा जाव अहेसत्त० वा होजा, अ० एगे रयण दो सक्कर होज्जा जाव अ० एगे रयण. दो अहेसत्त० होज्जा 6 अ० दो रयण० एगे सक्कर होजा जाव अ० दो रयण एगे अहेसत्त० होज्जा 12 अ० एगे सक्कर दो वालुय० होजा जाव अहवा एगे सक्कर. अहेसत्त होज्जा 17 अ० दोसकर एगे वालुय० होजा जाव अ० दो सक्कर एगे अहेसत्त होज्जा 22 ९शतके उद्देशकः 32 गाङ्गेयाधिकारः। सूत्रम् 373 (अपूर्णम्) प्रवेशनकप्रकारप्रश्नः। नैरयिकप्रवेशनके, एकद्वित्रिचतुर्नारकजीवप्रवेशनके विविधभङ्गप्रश्नाः / // 737 //