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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 736 // ॥नवमशतके द्वात्रिंशत्तमोद्देशकः॥ अनन्तरोद्देशके केवल्यादिवचनं श्रुत्वा केवलज्ञानमुत्पादयेदित्युक्तम्, इह तु येन केवलिवचनं श्रुत्वा तदुत्पादितं स दर्श्यते, इत्येवंसंबद्धस्य द्वात्रिंशत्तमोद्देशकस्येदमादिसूत्रम् १तेणं कालेणं तेणंसमएणं वाणियगा(ग्गा)मे नग(य)रे होत्था वन्नओ, दूतिपलासे(सए) चेइए, सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया, तेणं कालेणं 2 पासावच्चिजे गंगेए नामं अणगारे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ ते० उवागच्छइ(च्छि)त्ता समणस्स भगवओ महा० अदूरसामंते ठिच्चा समणं भ० म० एवं वयासी-२ संतरं भंते! नेरइया उववजंति निरंतरं नेरइया उववजंति?, गंगेया! संतरंपि ने० उव० निरंतरंपिने उव०, ३संतरं भंते! असुरकुमारा उव निरंतरं असुर० उव०?, गंगेया! संतरंपि असुर० उव० निरंतरंपि असुर० उव० एवं जाव थणियकुमारा, ४संतरं भंते! पुढविकाइया उव० निरंतरं पुढविकाइया उव०?, गंगेया! नो सं(सां)तरं पुढविकाइया उव० निरंतरं पुढवि० उव०, एवं जाव वणस्सइकाइया, बेइंदिया जाव वेमाणिया एते जहा णेरइया॥ सूत्रम् 371 // 5 संतरं भंते! नेरइया उववटुंति निरंतर नेरइया उववद्वृति?, गंगेया! संतरंपि ने० उवव० निरंतरंपि ने० उवव०, एवं जाव थणियकुमारा, ६संतरं भंते! पुढविक्काइया उववद्वृति? पुच्छा, गंगेया! णो संतरं पुढवि० उव निरंतरं पुढ० उव्वदृति, एवं जाव वणस्सइ० नो संतरं निरंतरं उव्वटुंति, 7 संतरं भंते! बेइंदिया उव्वटुंति निरंतरं बेंदिया उव्वटुंति?, गंगेया! संतरंपिबे० उव्वटुंति निरंतरंपि बे० उव्वदृति, एवं जाव वाणमंतरा, 8 संतरं भंते! जोइसिया चयंति? पुच्छा, गंगेया! संतरंपि जो चयंति निरंतरंपि जो० च०, एवं जाव वेमाणियावि॥ सूत्रम् 372 // 9 शतके उद्देशकः 32 गाङ्गेयाधिकारः। सूत्रम् 371-372 नै० आदि दण्डकेषु सान्तरनिरन्तरोत्पादच्यवनप्रश्नाः / // 73
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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