________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 729 // देवभवगहणेहितो अप्पाणं विसं०, जाओवि य से इमाओ नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवगतिनामाओ चत्तारि उत्तरपयडीओ तासिं च णं उवग्गहिए अणंताणुबंधी कोहमाणमायालोभे खवेइ अणं० २त्ता अपञ्चक्खाणकसाए कोहमाणमायालोभे खवेइ अप्प० 2 त्ता पच्चक्खाणावरण(णे)कोहमाणमायालोभे खवेइ पच्च० रत्ता संजलण(णे)कोहमाणमायालोभे खवेइ संज० 2 त्ता पंचविहंनाणाव० नवविहंदरिसणाव० पंचविहमंतराइयं तालमत्थकडंचणं मोहणिज्ज़ कट्टकम्मरयविक(कि)रणकरं अपुव्वकरणं अणुपविट्ठस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुन्ने केवलवरनाणदसणे समुप्पन्ने। सूत्रम् 367 // 28 सेणंभंते! केवलिपन्नतं धम्मं आघवेज वा पन्नवेज वापरूवेज वा?, नो तिणटेसमटे, णण्णत्थ एगण्णाएण वा एगवागरणेण वा, 29 सेणंभंते! पव्वावेज वा मुंडावेजवा?,णो ति०स०, उवदेसं पुण करेजा, 30 सेणंभंते! सिज्झतिजाव अंतं करेति?, हंता सिज्झति जाव अंतं करेति // सूत्रम् 368 // 31 से णं भंते! किं उट्ठे होज्जा अहो होजा तिरियं होजा?, गोयमा! उढेवा होज्जा अहे वा होज्जा तिरियं वा होजा, उड्डे होज्जमाणे सद्दावइ वियडावइ गंधावइ मालवंतपरियाएसु वट्टवेयद्दपव्वएसु होज्जा, साहरणं पडुच्च सोमणसवणे वा पंडगवणे वा होजा, अहे होज्जमाणे गड्डाए वा दरीए वा होज्जा, साहरणं प० पायाले वा भवणे वा होजा, तिरियं होजमाणे पन्नरससु कम्मभूमीसु होज्जा, साहरणं प० अड्डाइज्जे दीवसमुद्दे तदेकदेसभाए होजा, 32 ते णं भंते! एगसमएणं केवतिया होजा?,गोयमा! जह• एक्को वा दो वा तिन्निवा उक्को दस, से तेण गोयमा! एवं वु० असोच्चाणं केवलिस्स वा जाव अत्थे केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेजा सवणयाए अत्थे० असोच्चाणं केवलि जाव नोलभेजा सव० जाव अत्थे केवलनाणं उप्पाडेजा अत्थे केवलनाणं नो उप्पा०॥सूत्रम् 369 // 12 से णं भंते! इत्यादि, तत्र से णं ति स यो विभङ्गज्ञानी भूत्वाऽवधिज्ञानं चारित्रं च प्रतिपन्नः तिसु विसुद्धलेस्सासु होज्जत्ति |9 शतके | उद्देशक:३१ अश्रुत्वाधर्मलभेताधधिकारः। | सूत्रम् 368 अश्रुत्वा| केवलिन धर्मोपदेशप्रवज्या| सिद्धत्व| प्रश्नाः / सूत्रम् 369 अश्रुत्वा| केवलिन ऊवादिलोकस्थिति एककालेसंख्याप्रश्नाः। // 729 //