________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 699 // असंखगुणिया हवंति पुव्वुत्ता। तेयगकम्माबंधा अणंतगुणिया य ते सिद्धा॥ 31 // तत्तो उ अणंतगुणा ओरालियसव्वबंधगा होति। तस्सेव ततोऽबंधा य देसबंधा य पुव्वुत्ता॥३२॥ तत्तो तेयगकम्माणं देसबंधा भवे विसेसहिया / ते चेवोरालियदेसबंधगा होंतिमे वऽन्ने // 33 // जे तस्स सव्वबंधा अबंधगा जे य नेरइयदेवा // एएहिं साहिया ते पुणाइ के सव्वसंसारी // 34 // वेउब्वियस्स तत्तो अबंधगा साहिया विसेसेणं / ते चेव य नेरइयाइविरहिया सिद्धसंजुत्ता॥३५॥ आहारगस्स तत्तो अबंधगा साहिया विसेसेणं / ते पुण के सव्वजीवा आहारगलद्धिए मोत्तुं // 36 // समाप्तोऽयं बन्धः // 353 // अष्टमशते नवमः // 8-9 // 8 शतके | उद्देशक:१० देशाऽऽराधनाधधिकारः। | सूत्रम् 354 | शीलश्रुतचतुर्भङ्गीप्रश्नाः / ॥अष्टमशतके दशमोद्देशकः॥ अनन्तरोद्देशके बन्धादयोऽर्था उक्ताः, तांश्च श्रुतशीलसंपन्नाः पुरुषा विचारयन्तीति श्रुतादिसंपन्नपुरुषप्रभृतिपदार्थविचारणार्थो दशम उद्देशकः, तस्य चेदमादिसूत्रम् १रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी- अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव एवं परूवेंति- एवं खलु सील सेयं 1 सुयं सेयं 2 सुयं सेयं 3 सीलंसेयं 4, से कहमेयं भंते! एवं?, गोयमा! जन्नं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जावजे ते एवमाहंसुमिच्छा ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि, एवं खलु मए चत्तारि पुरिसजाया प०, तंजहा सीलसंपन्ने णाम एगेणो सुयसंपन्ने 1 सुयसंपन्ने नाम एगे नो सीलसंपन्ने 2 एगे सीलसंपन्नेवि सुयसंपन्नेवि 3 एगे णो सीलसंपन्ने नो सुयसंपन्ने 4 तत्थ णं जे से पढमे पुरिसजाए से णं पुरिसे सीलवं असुयवं, उवरए अविनायधम्मे, एस णं गोयमा! मए पुरिसे देसाराहए प०, तत्थ णं जे से दोच्चे पुरिसजाए से णं पुरिसे असीलवंसुयवं, अणुवरए विन्नायधम्मे, एस णं गोयमा! मए पुरिसे देसविराहए प०, तत्थ णं से तच्चे पुरिसजाए // 699 / /