________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 666 // 8 शतके उद्देशक:९ प्रयोगबन्धाघधिकारः। सूत्रम् एगिदियपुच्छा गो०! सव्वबं० जहेव एगिंदियस्स तहेव भाणियव्वं, देसबं० जह० एक्कं समयं उक्को तिन्निसमया जहा पुढविक्काइयाणं, एवं जावचउरिंदियाणं वाउक्काइयवजाणं, नवरंसव्वबं० उक्को. जाजस्स ठितीसा समयाहिया कायव्वा, वाउक्काइयाणंसव्वबंधतरं जह खुड्डागभवग्गहणं तिसमयऊणं उक्को तिन्नि वाससहस्साई समयाहियाई, देसबं० जह० एवं समयं उक्को० अंतोमुहत्तं, 37 पंचिंदियतिरिक्खजोणियओरालियपुच्छा, सव्वबं० जह खुड्डागभवग्गहणं तिसमयऊणं उक्लो पुव्वकोडी समयाहिया, देसबं० जहा एगिदियाणं तहा पंचिंदियतिरिक्खजो०, एवं मणुस्साणवि निरवसेसं भाणियव्वं जाव उक्लो० अंतोमुहत्तं // 38 जीवस्स णं भंते! एगिदियत्ते णोएगिंदियत्ते पुणरवि एगिदियत्ते एगिदियओरालियसरीरप्पओगबंधंतरं कालओ के होइ?, गोयमा! सव्वबं० जह दोखुड्डागभवग्गहणाई तिसमयऊणाई उक्को दोसागरोवमसहस्साइंसंखेजवासमन्भहियाई, देसबं० जह० खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं उक्को दोसागरोवमसहस्साइं संखेन्जवासमन्भहियाई,३९ जीवस्सणं भंते! पुढविकाइयत्ते नोपुढविकाइयत्ते पुणरवि पुढविकाइयत्ते पुढविकाइयएगिदियओ०बंधतरं कालओ केवच्चिर होइ?, गोयमा! सव्वबंधंतरं जह० दो खुड्डाइं(ग) भवग्गहणाई तिसमयऊणाई उक्को० अणंतं कालं अणंता उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा 0 असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा तेणं पोग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेजड़भागो, देसबं० जह खुड्डागभवग्गहणं समयाहियं उक्को० अणंतं कालं जाव आवलियाए असंखेजइभागो, जहा पुढविक्काइयाणं एवं वणस्सइकाइयवजाणं जाव मणुस्साणं, वणस्सइकाइयाणं दोन्नि खुड्डाई, एवं चेव उक्को० असंखिज्जं कालं असंखिज्जाओ उस्सप्पिणिओसप्पिणीओ कालओ, खे० असंखेज्जा लोगा, (r) एवं देसबंधंतरंपि उक्को पुढवीकालो॥४० एएसिणं भंते! जीवाणं ओरालियसरीरस्स देसबंधगाणं सव्वंबं० अबंध० य कयरे 2 जाव विसेसाहिया वा?, गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा ओरालियसरीरस्स सव्वबं० अबं० विसेसाहिया देसबंधगा असंखेजगुणा॥सूत्रम् 348 // 347-348 शरीरप्रयोगबन्दस्यौदारिकादि एकेन्द्रियौ० आदिभेदप्रभेद तस्यदेशादिबन्ध कालान्तरा8 दिप्रश्नाः। R // 666 //