________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 540 // मए समणस्स भ० म० अंतिए थूलए पाणातिवाए पच्चक्खाए जावजीवाए एवं जावथूलए परिग्गहे पञ्चक्खाए जावजीवाए, इयाणिपि णं अरिहंतस्स भ० म० अंतियं सव्वं पाणातिवायं पञ्चक्खामि जावजीवाए एवं जहाखंदओजाव एयंपिणं चरमेहिं ऊसासनीसासेहिं वोसिरिस्सामि त्तिक? सन्नाहपढें मुयइ सन्ना० मुइत्ता सल्ल॰ करेति सल्लुद्धरणं करेत्ता आलोइयपडिक्वंते समाहिपत्ते आणुपुव्वीए कालगए, तएणं तस्स वरुणस्स णागन० एगे पियबालवयंसए रहमु० सं० संगामेमाणे एगेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे अत्थामे अबले जाव अधारणिज्जमितिकट्ट वरुणं णाग० रहमुसलाओ संगामाओ पडिनिक्खममाणं पासइ पासइत्ता तुरए निगेण्हइ तुरए निगेण्हित्ता जहा वरुणे जाव तुरए विसजेति पडिसंथारगं दुरूहइ रत्ता पुरत्थाभिमुहे जाव अंजलिं कट्ठएवं व०- जाई णं भंते! मम पियबालवयस्सस्स वरुणस्स नागन० सीलाईवयाइंगुणाइंवेरमणाई पच्चक्खाणपोसहोववासाइंताइणं ममंपिभवंतु त्तिकट्ठसन्नाहपट्टे मुयइ रत्ता सल्लुद्धरणं करेति सल्लद्धरणं करेत्ता आणुपुव्वीए कालगए, तए णं तं वरुणं णाग० कालगयं जाणित्ता अहासन्निहिएहिं वाणमंतरेहिं देवेहिं दिव्वे सुरभिगंधोदगवासे वुढे दसद्धवन्ने कुसुमे निवाडिए दिव्वे य गीयगंधव्वनिनादे कए यावि होत्था, तए णं तस्स व० णाग० तं दिव्वं देविहिं दिव्वं देवजुर्ति दिव्वं देवाणुभागं सुणित्ता य पासित्ता य बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेति- एवं खलु देवाणु०! बहवे मणुस्सा जाव उववत्तारो भवंति // सूत्रम् 303 // 14 वरुणेणं भंते! नागनत्तुए कालमासे कालं किच्चा कहिं गए कहिं उववन्ने?, गोयमा! सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववन्ने, तत्थणं अत्थेगतियाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाणि ठिती प०, तत्थणं वरुणस्सविदे० चत्तारि पलिओवमाई ठिती प० / से णं भंते! वरुणे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भव० ठिइ० जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं करेहिति / 15 वरुणस्स णं भंते! णाग पियबालवयंसए कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उव०?, गोयमा! सुकुले पञ्चायते ।१६से णं भंते! ७शतके उद्देशकः९ असंवृतानगाराधिकारः। सूत्रम् 303 युद्धे हतानां स्वर्गगमन प्रश्नः। सूत्रम् 304 युद्ध हतस्य श्रमणोपासकनागपौत्रवरुणस्य सौधर्मे उपपात एकावतारितादि प्रश्नाः। // 540 //