________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 508 // उद्देशक:३ स्थावराधिकारः। सूत्रम् 280 शाश्वताशाश्वतत्व प्रज्ञापना B 8 कम्म वेयणत्ति, उदयं प्राप्तं कर्म वेदना धर्मधर्मिणोरभेदविवक्षणात्, 9 नोकम्मं निजरे ति काभावो निर्जरा तस्या 7 शतके एवंस्वरूपत्वादिति 10 नोकम्मं निजरेंसुत्ति वेदितरसं कर्म नोकर्म तन्निज़रितवन्तः, कर्मभूतस्य कर्मणो निर्जरणासम्भवादिति // 279 // पूर्वकृतकर्मणश्च वेदना तद्वत्ता च कथञ्चिच्छाश्वतत्वे सति युज्यत इति तच्छाश्वतत्वसूत्राणि, तत्र च 15 नेरइया णं भंते! किं सासया असासया?, गोयमा! सिय सा० सिय असा०, से केणटेणं भंते! एवं वु० नेर सिय सा० सिय नैरयिकानां असा०?, गोयमा! अव्वोच्छित्तिणयट्ठयाए सा० वोच्छित्तिणयट्ठयाए असा०, से तेण?णं जाव सिय सा० सिय असा०, एवं जाव वेमा जाव सिय असा० / सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 280 // 7-3 // प्रश्नः / उद्देशकः 4 अवोच्छित्तिणयट्ठयाए त्ति, अव्यवच्छित्तिप्रधानो नयोऽव्यवच्छित्तिनयस्तस्यार्थो द्रव्यमव्यवच्छित्तिनयार्थस्तद्धावस्तत्ता संसारीजीवतयाऽव्यवच्छित्तिनयार्थतया द्रव्यमाश्रित्य शाश्वता इत्यर्थः, वोच्छित्तिणयट्ठयाए त्ति व्यवच्छित्तिप्रधानो यो नयस्तस्य योऽर्थः ऽधिकारः। पर्यायलक्षणस्तस्य यो भावः सा व्यवच्छित्तिनयार्थता तया 2- पर्यायानाश्रित्याशाश्वता नारका इति // 280 // सप्तमशते सूत्रम् 281 जीवपृथिव्योतृतीयोद्देशकः॥७-३॥ र्भेदाः ॥सप्तमशतके चतुर्थोद्देशकः॥ पृथिव्यायुष भवस्थित्यादि तृतीयोद्देशके संसारिणः शाश्वताऽऽदिस्वरूपतो निरूपिताश्चतुर्थोद्देशके तु तानेव भेदतो निरूपयन्नाह१रायगिहे नगरे जाव एवं वदासी-कतिविहाणं भंते! संसारसमावन्नगा जीवा प०?, गोयमा! छव्विहा संसारसमा० जीवा प०, 8 // 508 // तंजहा- पुढविकाइया एवं जहा जीवाभिगमे जाव सम्मत्तकिरियं वा मिच्छत्तकि० वा / / सेवं भंते शत्ति / जीवा छव्विह पुढवी जीवाण ठितीभवहिती काए। निल्लेवण अणगारे किरिया सम्मत्तमिच्छत्ता॥१॥सूत्रम् 281 // 7-4 // प्रश्नाः /