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________________ श्रीभगवत्य श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 476 // इत्येवं सम्बन्धस्यास्येदमादिसूत्रम् 6 शतके १जीवेणं भंते! णाणावरणिजंकमंबंधमाणे कति कम्मप्पगडीओ बंधति?, गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबं० वा छव्विहबं० उद्देशकः९ कर्माधिकारः। वा, बंधुद्देसो पन्नवणाए नेयव्वो॥सूत्रम् 252 // सूत्रम् 252 १जीवेण मित्यादि, सत्तविहबंधए, आयुरबन्धकाले, अट्ठविहबंधए त्ति, आयुर्बन्धकाले, छविहबंधए त्ति सूक्ष्मसम्पराया घड़िधादिकर्म प्रकृतिबन्ध वस्थायां मोहायुषोरबन्धकत्वात् / बंधुद्देसो इत्यादि, बन्धोद्देशकः प्रज्ञापनायाः सम्बन्धी चतुर्विंशतितम पदात्मकोऽत्र स्थाने 8 प्रश्नाः / नेतव्योऽध्येतव्यः, स चायं नेरइए णं भंते! णाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपगडीओ बंधइ?, गोयमा! अट्ठविहबंधगे वा सूत्रम् 253 स्वशरीरादिसत्तविहबंधगे वा एवं जाव वेमाणिए, नवरं मणुस्से जहा जीव इत्यादि // 252 // जीवाधिकाराद्देवजीवमधिकृत्याह विकुर्वणादि कालक२ देवेणंभंते! महिद्दीए जाव महाणुभाए बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगवन्नं एगरूवं विउव्वित्तए?, गोयमा! नो तिणढे। आदिपुद्गलं 3 देवेणं भंते! बाहरए पो० परियाइत्ता पभू?, हंता पभू, 4 सेणं भंते! किं इहगए पो० परि विउव्वति तत्थगए पोग्गले परि० विकु० नीलकआदि पुद्रलतादि अन्नत्थगए पो० परि विउ०?, गोयमा! नो इहगए पो० परि० विउ०, तत्थगए पो० परि० विकु०, नो अन्नत्थगए पो० परियाइत्ता परिणमनविउ०, एवं एएणं गमेणं जाव एगवन्नं एगरूवं 1 एगवण्णं अणेगरूवं 2 अणेगवन्नं एगरूवं 3 अणेगवन्नं अणेगरूवं 4 चउभंगो।५ देवेणं भंते! महिद्दीए जाव महाणुभागे बाहिरए पो० अपरि० पभू कालयं पोग्गलं नीलगपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए नीलगं पो० वा कालगपोग्गलत्ताए परि०?, गोयमा! नो ति०स०, परि० पभू।सेणंभंते! किं इहगए पोतंचेव नवरं परिणामेतित्ति भाणियव्वं, // 476 // एवं कालगपोग्गलं लोहियपोग्गलत्ताए, एवं कालएणं जावसुक्किलं, एवंणीलएणंजाव सुक्किलं, एवं लोहियपो० जाव सुक्किलत्ताए, एवं हालिद्दएणं जाव सुक्किलं, तंजहा- एवं एयाए परिवाडीए गंधरसफास० कक्खडफासपोग्गलं मउयफासपोग्गलत्ताए 2 एवं दो सामर्थ्य प्रश्नाः /
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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