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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभयवृत्तियुतम् भाग-१ // 464 // राधकारः। सूत्रम्२४७ महत्तच्छिवासादि शीर्षप्रहेलिकान्तगणनायकाल पल्यसागरादिउत्सर्पिण्यन्तोपमेयकालमान प्रना:। कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निम्मले निट्ठिए निल्लेवे अवहडे विसुद्धे भवति, से तं पलिओवमे / गाहा- एएसिं पल्लाणं कोडाकोडी हवेज दसगुणिया / तं सागरोवमस्स उ एक्कस्स भवे परिमाणं ॥१॥एएणं सागरोवमपमाणेणं चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा 1 तिन्नि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमा 2 दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमदूसमा 3 एगा सागरोवमकोडाकोडी बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिया कालो दूसमसुसमा 4 एक्कवीसंवाससहस्साइंकालो दूसमा ५एकवीसं वाससहस्साई कालो दूसमदूसमा 6 / पुणरवि ओस(उस्स)प्पिणीए एकवीसं वाससहस्साई कालो दूसमदूसमा 1 एकवीसं वाससहस्साईजाव चत्तारि सागरोवमओ कालोसुसमसुसमा, दस सागरोवम०ओकालोओसप्पिणी दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणी वीसंसागरोवमकोडाकोडीओकालो ओसप्पिणीय उस्सप्पिणी य॥सूत्रम् 247 // 7 जंबूहीवेणं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए उत्तमट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था?, गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहानामए- आलिंगपुक्खरेति वा एवं उत्तरकुरुवत्तव्वया नेयव्वा जाव आसयंति सयंति, तीसे णं समाए भारहे वासे तत्थ 2 देसे 2 तहिं 2 बहवे ओराला कुद्दाला जाव कुस विकुसविसुद्धक्खमूला जाव छव्विहा मणुस्सा अणुसजित्था प०,०- पम्हगंधा 1 मियगंधा 2 अममा 3 तेयली 4 सिहासणिं 5 चारि 6 / सेवं भंते!२! ॥सूत्रम् 248 // 6-7 // 4 ऊसासद्धा वियाहिय त्ति, उच्छ्रासाद्धा इति, उच्छ्रासप्रमितकालविशेषा व्याख्याता उक्ता भगवद्भिरिति, अत्रोत्तरमसंखेज्जे त्यादि, असङ्ख्यातानां समयानां सम्बन्धिनो ये समुदाया वृन्दानि तेषां याः समितयो मीलनानि तासां यः समागमः संयोगः समुदायसमितिसमागमस्तेन यत्कालमानं भवतीति गम्यते सैकाऽऽवलिकेति प्रोच्यते, संखेज्जा आवलिय त्तिकिल षट्पञ्चा सूत्रम् 248 सुषमसुषमाकाले आकारभावप्रत्यावतारादि प्रश्राः / पागधमगगन्धाममतजस्ताल महिष्ण मन्ध्या // 464 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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