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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 427 // त्ति निःशेषतया पातात्, 4 जल्लियस्सत्ति यल्लितस्य यानलगन(अनलगत)धर्मोपेतमलयुक्तस्य, पंकियस्स त्ति, आर्द्रमलोपेतस्य, मइल्लियस्स त्ति कठिनमलयुक्तस्य, रइल्लियस्स त्ति रजोयुक्तस्य, परिकम्मिज्जमाणस्स त्ति क्रियमाणशोधनार्थोपक्रमस्य // 233 // 5 वत्थस्स णं भंते! पोग्गलोवचए किं पयोगसा वीससा?, गोयमा! पओगसावि वीससावि। 6 जहा णं भंते! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए पओ विवी०वितहाणंजीवाणं कम्मोवचए किंपओ० वी०?, गोयमा! पओ० नो वी०,७ से केणटेणं.?,गोयमा! जीवाणं तिविहे पओगे प०, तंजहा- मणप्पओगे वइ. का०, इच्चेतेणं तिविहेणं पओगेणं जीवाणं कम्मोव० पओ० नो वी०, एवं सव्वेसिं पंचेंदियाणं ति० पओगे भाणियव्वे, पुढविकाइयाणं एगविहेणं पओगेणं एवं जाव वणस्सइका०, विगलिंदियाणं दु० पओगे प०, तंजहा- वइपओगे य कायप्प० य, इच्चेतेणं दुविहेणं पओगेणं कम्मोव० पओ० नो वी०, से एएणटेणं जाव नो वी० एवं O जस्स जोपओगोजाव वेमाणियाणं / सूत्रम् 234 // 5 वस्त्रेत्यादिद्वारे पओगसा वीससा य त्ति छान्दसत्वात् प्रयोगेण पुरुषव्यापारेण विश्रस(त)या स्वभावेनेति। 6 जीवाणं कम्मोवचए पओगसा णो वीसस त्ति प्रयोगेणैव, अन्यथाप्रयोगस्यापि बन्धप्रसङ्गः॥२३४॥ 8 वत्थस्स णं भंते! पोग्गलोवचए किं सादीए सपज्जवसिए१ सादीए अपज्जवसिते 2 अणादीए सपज्ज०३ अणा० अप० 4?, गोयमा! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए सा० सपज्ज०, नो सादीए अपज्ज०, नो अणा०, सपन० नो अणा० अपज्ज०।९जहा णं भंते! वत्थस्स पोग्गलो. सा० सपज्ज०, नो सा० अपज०, नो अणा० सपज्ज० नो अणा० अपज० तहा णं जीवाणं कम्मोव० पुच्छा, गोयमा! अत्थेग० जीवाणं कम्मोव० सादीए सपज्ज०, अत्थे० अणा० सपज्ज०, अत्थे• अणा० अपज्ज०, नो चेवणंजीवाणं कम्मोव० ®-जल्ल-मेल (रजोमल्लिक)। 6 शतके उद्देशक:३ महाश्रवाधिकारः। सूत्रम् 234 वस्त्र इव जीवस्य प्रयोगविस्रसाभ्यामुपचयादि तत्कारणादि तत्सादिसांतादि प्रश्नाः / सूत्रम् 235 वस्त्रजीवयोः सादिसान्तताऽऽदि प्रश्नाः / // 427 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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