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________________ श्रीभगवत्या श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 424 // महवेदणे य वत्थे कद्दमखंजणमए य अहिगरणी। तणहत्थे य कवल्ले करण महावेदणा जीवा॥१॥सूत्रम् 231 / / सेवं भंते! २!त्ति // छट्ठसयस्स पढमो उद्देसो समत्तो॥६-१॥ 5 कम्मकरणं ति कर्मविषयं करणं जीववीर्य बन्धनसङ्कमादिनिमित्तभूतं कर्मकरणम्, 19 वेमायाए त्ति विविधमात्रया कदाचित्सातांकदाचिदसातामित्यर्थः / / 230 // महावेयण इत्यादि सङ्गहगाथा गतार्था॥२३१॥ षष्ठे शते प्रथमोद्देशकः॥ 6-1 // ॥षष्ठशतके द्वितीयोद्देशकः॥ अनन्तरोद्देशके य एते सवेदना जीवा उक्तास्त आहारका अपि भवन्तीत्याहारोद्देशक: रायगिहं नगरंजाव एवं व०- आहारुद्देसो जो पन्नवणाए सो सव्वो निरवसेसो नेयव्वो। सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 232 // छटेसए बीओ उद्देसोसमत्तो॥६-२॥ सच प्रज्ञापनायामिव दृश्यः,(प्रज्ञापनासू०-आहारपद-२८) एवं चासौ नेरइयाणं भंते! किं सच्चित्ताहारा १अच्चित्ताहारा 2 मीसाहारा 3?, गोयमा! नो सच्चित्ताहारा 1 अच्चित्ताहारा 2 नो मीसाहारा 3 इत्यादि॥ 232 // षष्ठशते द्वितीयोद्देशकः॥६-२॥ ॥षष्ठशतके तृतीयोद्देशकः॥ अनन्तरोद्देशके पुद्गला आहारतश्चिन्तिताः, इह तु बन्धादित इत्येवंसम्बन्धस्य तृतीयोद्देशकस्यादावर्थसङ्ग्रहगाथाद्वयम्बहुकम्म-वत्थ-पोग्गल-पयोगसा-वीससा य सादीए। कम्मट्टिती-त्थि-संजय सम्मट्ठिीय सन्नी य॥१॥ 6 शतके उद्देशक:२ आहाराधिकारः। सूत्रम् 232 यथाप्रज्ञापनायाम्। उद्देशक:३ महाश्रवाधिकारः। उद्देशकार्थसाहगाथा। // 424
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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