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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 398 // 5 शतके उद्देशक: 7 पुद्गलादि एजनाधिकारः। सूत्रम् 219 नारकादी चतुर्विंशतिदण्डकेन सारम्भत्वादि प्ररूपयन्नाह 28 नेरइया णं भंते! किं सारंभा सपरिग्गहा उदाहु अणारंभा अपरिग्गहा?, गोयमा! ने० सारंभा सपरिग्गहा नो अणारंभा णो अपरि०।२९ सेकेणटेणंजाव अपरि०?, गोयमा! नेणं पुढविकायंसमारंभंति जाव तसकायंसमारंभंति सरीरा परिम्गहिया भवंति कम्मा परि० भ० सचित्ताचित्तमीसयाई दव्वाइं परि० भ०, से तेणटेणं तं चेव (गोयमा!)। 30 असुरकुमारा णं भंते! किं सारंभा 4? पुच्छा, गोयमा! असुरकु. सारंभा सपरि० नो अणारंभा अप० / 31 से केणटेणं?, गोयमा! असुरकु० णं पुढविकायं समारंभंति जाव तसकायंसमारंभंति सरीरा परि० भवंति कम्मा परि० भ० भवणा परि० भ० देवा देवीओमणुस्सा मणुस्सीओतिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ परिग्गहियाओभ० आसणसयणभंडमत्तोवगरणा परि० भ० सञ्चित्ताचित्तमीसयाइंदव्वाइं परि० भ० से तेण. तहेव एवं जाव थणियकुमारा / एगिदिया जहा नेरइया / 32 बेइंदिया णं भंते! किं सारंभा सपरि० तं चेव जाव सरीरा परि० भ० बाहिरिया भंडमत्तोवगरणा परि० भ० सचित्ताचित्त० जाव भ० एवं जाव चउरिंदिया। 33 पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते! तं चेव जाव कम्मा परि० भ० टंका कूडा सेला सिहरी पब्भारा परि० भ० जलथलबिलगुहालेणा परि० भ० उज्झरनिज्झरचिल्ललपल्ललवप्पिणा परि० भ० अगडतडागदहनदीओ वाविपुक्खरिणीदीहिया गुंजालिया सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतीयाओ परिग्गहियाओ भवंति आरामुजाणा काणणा वणाई वणसंडाई वणराईओ परि० भ० देवउलसभापवाथूभाखातियपरिखाओ परिग्गहियाओभ० पागारट्टालगचरियदारगोपुरा परि० भ० पासादघरसरणलेणआवणा परि० भ० सिंघाडगतिगचउक्कचच्चरचउम्मुहमहापहा परि० भ० सगडरहजाणजुग्गगिल्लिथिल्लिसीयसंदमाणियाओ परि० भ० लोहीलोहकटाहकडुच्छुया परि० भ० भवणा परि० भ० देवा देवीओ मणुस्सा मणुस्सीओ तिरिक्खजोणिओ तिरिक्खजोणिणीओ आसणसयणखंभभंडसचित्ताचित्तमीसयाई 8 // 398 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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