________________ श्रीभगवत्यहा श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 391 // ५पुद्गलाधिकारादेवेदं सूत्रवृन्दं परमाण्वि त्यादि, ओगाहेजत्ति, अवगाहेतऽऽश्रयेत छिद्येत, द्विधाभावं यायाद्भिद्येत विदारणभावमात्रं यायात्, 6 नो खलु तत्थ सत्थं कमइ त्ति परमाणुत्वादन्यथा परमाणुत्वमेव न स्यादिति। अत्थेगइए छिज्जेज त्ति तथाविधबादरपरिणामत्वात्, 8 अत्थेगइए नो छिज्जेज्ज त्ति सूक्ष्मपरिणामत्वात्, उल्ले सिय त्ति, आर्दो भवेत्, विणिहायमावज्जेज त्ति प्रतिस्खलनमापद्येत परियावज्जेज त्ति पर्यापद्येत विनश्येत् // 214 // 9 परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सअढे समझे सपएसे? उदाहु अणड्ढे अमज्झे अपएसे?, गोयमा! अणद्वे अमझे अपएसे नो सअड्डे नो समझे नो सपएसे // 10 दुपदेसिए णं भंते! खंधे किं सअद्धे समझे सपदेसे उदाहु अणद्धे अमझे अपदेसे?, गोयमा! सअद्धे अमझे सपदेसे, णो अणद्धे णो समझे णो अपदेसे / 11 तिपदेसिएणं भंते! खंधे पुच्छा, गोयमा! अणद्धे समझे सपदेसे नोसअद्धे णो अमझे णो अपदेसे, जहा दुपदेसिओतहा जे समाते भाणियव्वा, जे विसमा ते जहा तिपएसिओ तहा भाणियव्वा। 12 संखेजपदेसिए णं भंते! खंधे किं सअड्ढे 6? पुच्छा, गोयमा! सिय सअद्धे अमज्झे सपदेसे सिय अणद्दे समझे सपदेसे जहा संखेजपदेसिओतहा असंखेजपदेसिओऽवि अणंतपदेसिओऽवि // सूत्रम् 215 // 9-12 दुपएसिए इत्यादि, यस्य स्कन्धस्य समाः प्रदेशाः स सार्हो यस्य तु विषमाः स समध्यः, समयेयप्रदेशिकादिस्तु स्कन्धः समप्रदेशिक इतरश्च, तत्र यः समप्रदेशिकः स सार्दोऽमध्यः, इतरस्तु विपरीत इति // 215 // 13 परमाणुपोग्गलेणं भंते! परमाणुपोग्गलं फुसमाणे किं देसेणं देसं फुसइ 1 देसेणं देसे फुसइ 2 देसेणं सव्वं फु०३ देसेहिं देसं फु० 4 देसेहिं देसे फु०५ देसेहिं सव्वं फु० 6 सव्वेणं देसं फु०७ सव्वेणं देसे फु० 8 सव्वेणं सव्वं फु० 9?, गोयमा! णो देसेणं देसंफु० णो देसेणं देसे फु० णो देसेणं सव्वं फु० णो देसेहिं देसं फु० नो देसेहिं देसे फु० नो देसेहिं सव्वं फु० णो सव्वेणं देसं फु० णो सव्वेणं 5 शतके उद्देशक:७ पुद्रलादि | एजनाधिकारः। सूत्रम् 215 | परमाण्वादेः सार्धताऽऽदि प्रश्नाः / | सूत्रम् 216 | परमाण्वादीनां | परस्परं देशसर्वादीनां देशसर्वादि नवविकल्पैः स्पर्शना प्रश्नाः। // 39 //