________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 390 // परि० / 2 दुपदेसिएणं भंते! खंधे ए. जाव परि०?, गोयमा! सिय ए. जाव परि० सिय णो ए० जावणो परि०, सिय देसे ए० देसे नो 5 शतके ए०।३ तिप्पएसिए णं भंते! खंधे ए०? गोयमा! सिय ए. सिय नो ए०, सिय देसे ए० नो देसे ए० सिय देसे ए० नो देसा एयंति सिय देसा उद्देशक: पुदलादि ए० नो देसे एयति।४ चउप्पएसिएणं भंते! खंधे ए०?, गोयमा! सिय ए० सिय नोए० सिय देसे ए० णो देसे ए० सिय देसे ए० णो देसा एजनाधिकारः। ए. सिय देसा ए० नो देसे ए० सिय देसा ए० नो देसा ए० जहा चउप्पदेसिओतहा पंचपदे. तहाजाव अणंतपदेसिओ॥सूत्रम् 213 // सूत्रम् 213 परमाणुद्वेणु५परमाणुपोग्गले णं भंते! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा?, हंता! ओगा०।६ सेणं भंते! तत्थ छिज्जेज वा भिज्जेज वा?, कादिएजन प्रश्नाः / गोयमा! णो तिणढे समढे, नो खलु तत्थ सत्थं कमति, एवं जाव असंखेजपएसिओ। 7 अणंतपदेसिएणं भंते! खंधे असिधारंवा सूत्रम् 214 खुरधारं वा ओगा०?, हंता! ओगा०, 8 से णं तत्थ छि० वा भिज्जेन वा?, गोयमा! अत्थेगतिए छि० वा भि० वा अत्थे० नो छि० वा परमाण्वनन्त प्रदेशादीनामनो भि० वा, एवं अगणिकायस्स मज्झमज्झेणं तहिंणवरं झियाएजा भाणितव्वं, एवं पुक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झम० तहिं सिधाराऽवगाउल्ले सिया, एवं गंगाए महाणदीए पडिसोयं हव्वमागच्छेज्जा, तहिं विणिहायमावजेज्जा, उदगावत्तं वा उदगबिंदुंवा ओगा० से णं हनादि प्रश्नाः। तत्थ परियावज्जेज्जा // सूत्रम् 214 // 1 परमाण्वि त्यादि, सिय एयइ त्ति कदाचिदेजते, कादाचित्कत्वात्सर्वपुद्गलेष्वेजनादिधर्माणाम् / 2 द्विप्रदेशिके त्रयो विकल्पाः स्यादेजनं 1 स्यादनेजनं 2 स्याद्देशेनैजनं देशेनानेजनं चेति 3, व्यंशत्वात्तस्येति / 3 त्रिप्रदेशिके पञ्च, आद्यास्त्रयस्त एव, व्यणुकस्यापि तदीयस्यैकस्यांशस्य तथाविधपरिणामेनैकदेशतया विवक्षितत्वात्, तथा देशस्यैजनं देशयोश्चानेजनमिति: 390 // चतुर्थः, तथा देशयोरेजनं देशस्य चानेजनमिति पञ्चमः / 4 एवं चतुःप्रदेशिकेऽपि नवरं षट्, तत्र षष्ठो देशयोरेजनं देशयोरेव चानेजनमिति // 213 //