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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 369 // समणे भ० म० अम्हेहिं मणसा पुढे अम्हं म० चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरेति- एवं खलु देवाणु मम सत्त अंतेवासीसयाईजाव अंतं करेहिति, तए णं अम्हे समणेणं भ० महा०म० चेव पुढेणं म० चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरिया समाणा समणं भ० महा० वंदामो नम० रत्ता जाव पञ्जुवासामोत्तिक? भगवं गोतमं वं० नम० रत्ता जामेव दिसिं पाउ० तामेव दिसिंप० / / सूत्रम् 189 / / 15 तेण मित्यादि, महाशुक्रात्सप्तमदेवलोकात्, झाणंतरियाए त्ति, अन्तरस्य विच्छेदस्य करणमन्तरिका ध्यानस्यान्तरिका ध्यानान्तरिकाऽऽरब्धध्यानस्य समाप्तिरपूर्वस्यानारम्भणमित्यर्थोऽतस्तस्यां वर्तमानस्य, कप्पाओ त्ति देवलोकात्सग्गाओ त्ति स्वर्गाद, देवलोकदेशात्प्रस्तटादित्यर्थः, विमाणाओ त्ति प्रस्तटैकदेशादिति, वागरणाई तिव्याक्रियन्त इति व्याकरणाः प्रश्नार्था अधिकृता एव कल्पविमानादिलक्षणाः॥१८९॥ देवप्रस्तावादिदमाह १६भंतेत्ति भगवंगोयमेसमणंजाव एवंव०-देवाणं भंते! संजयाति वत्तव्वं सिया?, गोयमा! णो तिणटेसमटे, अब्भक्खाणमेयं, 17 देवाणंभंते! असंजताति वत्तव्वं सिया?, गोयमा! णो तिणढे०, णिहरवयणमेयं, 18 देवाणंभंते! संजयासंजयाति व सिया?, गोयमा! णो ति० स०, असब्भूयमेयं देवाणं, 19 से किं खातिणंभंते! देवातिव० सिया?,गोयमा! देवाणं नोसंजयाति व सिया ॥सूत्रम् 190 // 20 देवाणं भंते! कयराए भासाए भासंति?, कयरा वा भासा भासिज्जमाणी विसिस्सति?, गोयमा! देवाणं अद्धमागहाए भासाए भासंति, सा वियणं अद्धमागहा भासा भासिन्जमाणी विसिस्सति // सूत्रम् 191 / / 16 देवा ण मित्यादि, 19 से किं खाइ णं भंते! देवाइ वत्तव्वं सिय त्ति से, इत्यथार्थः किमिति प्रश्नार्थः, णं वाक्यालङ्कारार्थः, 5 शतके उद्देशकः 4 शब्दाधिकारः। सूत्रम् 189 अन्तेवासीसिद्धिसंबंधी देवयोर्मनसा पृष्टप्रश्नस्य भगवत: मनसेवव्याकरणम्। श्रीगौतमस्य तज्ज्ञातुमिच्छा देवाभ्यां यथास्थितकथनम्। सूत्रम् 190-191 देवस्य संयतासंयतादिदेवभाषादि प्रश्नाः / // 369 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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