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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ / / 361 // 888888888888800000008380008 4 से नूणं भंते! जे जं भविए जोणिं उववज्जित्तए से तमाउयं पकरेइ, तंजहा- नेरइयाउयं वा जाव देवाउयं वा?, हंता गोयमा! जे 5 शतके उद्देशक:३ जंभविए जोणिं उव० से तमाउयं पक०, तंजहा- नेर० वा तिरि० मणु देवाउयं वा, नेरइयाउयं पकरेमाणे सत्तविहं पक०, तंजहा जालिग्रन्थिरयणप्पभापुढविनेर वा जाव अहेसत्तमापुढविनेरइयाउयंवा, तिरिक्खजोणियाउयंपकरेमाणे पंचविहं पक०, तंजहा- एगिदिय काऽधिकारः। सूत्रम् 184 तिरिक्खजोणियाउयंवा, भेदो सव्वो भाणियव्वो, मणुस्साउयं दुविहं, देवाउयं चउव्विहं, सेवं भंते! 2! / / सूत्रम् 184 // पञ्चमशते नैरयिकादीनां साऽऽयुष्कोतृतीयोद्देशकः / / 5-3 // त्पत्त्यादि प्रश्नाः / 2 जीवे ण मित्यादि, से णं भंते त्ति, अथ तद्भदन्त! 3 कहिं कडे त्ति क्व भवे बद्धं समाइण्णे त्ति समाचरितं तद्धेतुसमाचरणात्, उद्देशक:४ 4 जे जं भविए जोणिं ववज्जित्तए त्ति विभक्तिपरिणामाद्यो यस्या योनावुत्पत्तुं योग्य इत्यर्थः, मणुस्साउयं दुविहं ति संमूर्छिमगर्भ शब्दाधिकारः। सूत्रम् 185 व्युत्क्रान्तिकभेदाविधा देवाउयं चउव्विहं ति भवनपत्यादिभेदादिति // 184 // पञ्चमशते तृतीयः॥५-३॥ छद्मस्थस्य केवलिनश्च शङ्खादीनां स्पृष्टाऽऽराद्गत॥पञ्चमशतके चतुर्थोद्देशकः॥ शब्दश्रवण ज्ञानादि प्रश्नाः। अनन्तरोद्देशकेऽन्ययूथिकछद्मस्थमनुष्यवक्तव्यतोक्ता, चतुर्थे तु मनुष्याणां छद्मस्थानां केवलिनांच प्रायः सोच्यत इत्येवं-- केवलिनः संबन्धस्यास्येदमादिसूत्रम् |सर्वगतशब्द ज्ञानादि प्रश्नाः। १छउमत्थे णं भंते! मणुस्से आउडिज्जमाणाइंसद्दाइंसुणेइ, तंजहा-संखसहाणि वा सिंगस संखियस. खरमुहिस० पोयास० // 361 // परिपिरियास. पणवस० पडहस० भंभास होरंभस० भेरिसदाणिवा झल्लरिस दुंदुहिस तयाणिवा वितयाणि घणाणिवा झुसिराणि वा?, हंता गोयमा! छउमत्थे णंमणूसे आउडिजमाणाइंसद्दाइंसुणेइ, तंजहा-संखसद्दाणि वा जाव झुसिराणि वा।२ ताई भंते! किं
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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