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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 358 // 19 लवणेणं भंते! समुद्दे केवतियं चक्कावालविक्खंभेणं प०?, एवं नेयव्वं जाव लोगट्टिती लोगाणुभावे, सेवं भंते! २त्ति भगवं जाव विहरइ॥सूत्रम् 182 / / पञ्चमशते द्वितीयः॥५-२॥ लवणे ण मित्यादि, एवं णेयव्वं ति, उक्ताभिलापानुगुणतया नेतव्यं जीवाभिगमोक्तं लवणसमुद्रसूत्रम्, किमन्तमित्याह जाव लोगे त्यादि, तच्चेदं केवइयं परिक्खेवेणं?, गोयमा! दो जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं पण्णरस सयसहस्साई एक्कासीय च सहस्साई सयं च इगुणयालं किंचिविसेसूणं परि० प० इत्यादि, एतस्य चान्ते कम्हा णं भंते! ल समुद्दे जंबूद्दीवं 2 नो उव्वीलेई त्यादौ प्रश्ने गोयमा! जंबूद्दीवे 2 भरहेरवएसु वासेसु अरहंता चक्कवट्टी त्यादेरुत्तरग्रन्थस्यान्ते लोगट्ठिई त्यादि द्रष्टव्यमिति // 182 // पञ्चमशते द्वितीयः॥५-२॥ ५शतके उद्देशक:२ वायुरधिकारः। सूत्रम् 182 लवणसमुद्रस्य चक्रवालविष्कम्भ प्रश्नाः / उद्देशक:३ जालिग्रन्थिकाऽधिकारः। सूत्रम् 183 जालिग्रन्थिकादृष्टान्तेन एकसमये व्यायुर्वेदन अन्ययूथिक प्रश्राः / ॥पञ्चमशतके तृतीयोद्देशकः॥ अनन्तरोक्तं लवणसमुद्रादिकं सत्यं सम्यग्ज्ञानिप्रतिपादितत्वात्, मिथ्याज्ञानिप्रतिपादितं त्वसत्यमपि स्यादिति दर्शयंस्तृतीयोद्देशकस्यादिसूत्रमिदमाह १अण्णउत्थिया णं भंते! एवमातिक्खंति भा०प० एवं प० से जहानामए जालगंठिया सिया आणुपुव्वि गहिया अणंतरगढिया परंपरगढिया अन्नमन्नगढिया अन्नमन्नगुरुयत्ताए अन्नमन्नभारियत्ताए अन्नमन्नगुरुयसंभारियत्ताए अण्णमण्णघडताए जाव चिटुंति, एवामेव बहूणंजीवाणंबहूसु आजातिसयसहस्सेसुबहूई आउयसहस्साई आणुपुव्विंगढियाईजाव चिटुंति, एगेवि यणंजीवे एगेणं समएणं दो आउयाइंपडिसंवेदयति, तंजहा- इहभवियाउयंच परभवियाउयंच, जंसमयं इहभवि० पडिसंवेदेइतं समयं परभवि० 8 // 358 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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