SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 347 // 5 शतके उद्देशकः१ चम्पारवि| रधिकारः। सूत्रम् 177 पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणार्धेषु दिन रात्रिजघन्योत्कृष्टमान प्रश्नाः। णंजंबूद्दीवे 2 मंदरस्स पव्व० उत्तरदाहिणेणंराती भ०?, हंता गोयमा! जदाणंजंबू० मंदरपुरच्छिमेणं दिवसेजाव राती भ०, ४जदा णं भंते! जंबूद्दीवे 2 दाहिणड्डे उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भ० तदा णं उत्तरडेवि उ० अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भ० जदाणं उत्तरद्धे उ० अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भ० तदाणं जंबूद्दीवे 2 मंदरस्स पुरच्छिमपञ्चत्थिमेणं जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राती भ०?, हंता गोयमा! जदा णंजंबू० जाव दुवालसमुहुत्ता राती भ०।५जदाणं जंबू० मंदरस्स पुरच्छि(त्थि)मेणं उक्कोसए अट्ठारस मुत्ते दिवसे भ० (जाव) तदा णं जंबूद्दीवे 2 पच्चत्थिमेणवि उक्को० अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भ०, जया णं पञ्चत्थिमेणं उ० अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भ० तदा णं भंते! जंबूद्दीवे 2 उत्तरं दुवालसमुहुत्ता जाव राती भ०?, हंता गोयमा! जाव भ०।६ जया णं भंते! जंबू० दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भ० तदा णं उत्तरे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भ० जदा णं उत्तरे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भ० तदा णं जंबू० मंदरस्स प० पुरच्छिमपञ्चत्थिमेणंसातिरेगा दुवालस मुहुत्ता राती भ०?, हंता गोयमा! जदाणंजंबू० जाव राती भ०।७ जदाणं भंते! जंबूद्दीवे 2 मंदरस्स प० पुरच्छिमेणं अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भ० तदा णं पञ्चत्थिमेणं अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भ० जदा णं पच्चत्थिमेणं अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भ० तदाणंजंबू०२ मंदरस्स प० दाहिणेणं साइरेगा दुवालसमुहुत्ता राती भ०?, हंता गोयमा! जाव भ०॥ एवं एतेणं कमेणं ओसारेयव्वंसत्तरसमुहुत्ते दिवसे तेरसमुहुत्ता राती भ० सत्तरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे सातिरेगा तेरसमुहुत्ताराती सोलसमुहुत्ते दिवसे चोद्दसमुहुत्ता राई सोलसमुहुत्ताणंतरे दिवसे सातिरेगचोद्दसमुहुत्ता राती पन्नरसमुहुत्ते दिवसे पन्नरसमुहुत्ता राती भवति पन्नरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे सातिरेगा पन्नरसमुहुत्ता राती चोद्दसमुहुत्ते दिवसे सोलसमुहत्ता राती चोद्दसमुहुत्ताणंतरे दिवसे सातिरेगा सोलसमुहुत्ता राती तेरस मुहुत्ते दिवसे सत्तरसमुहुत्ता राती तेरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे सातिरेगा सत्तरसमुहुत्ता राती। 8 जया णं जंबू० दाहिणड्डेजहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भ० तयाणं उत्तरडेवि, जयाणं उत्तरड्डे तयाणंजंबूद्दीवे 2 मंदरस्सप० पुरच्छिमेणं उक्कोसिया // 347
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy