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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 342 // | उद्देशक: 10 सूत्रम् 175 लेश्यानामन्योऽन्यंपरिणामः। ॥चतुर्थशतके दशमोद्देशकः॥ 4 शतके लेश्याधिकारात्तद्वत एव दशमोद्देशकस्येदमादिसूत्रम् १से नूणं भंते! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारुवत्ताए तावण्णत्ताए एवं चउत्थो उद्दे० पन्नवणाए चेव लेस्सापदे नेयव्वो जावपरिणामवण्णरसगंधसुद्धअपसत्थसंकिलिझुण्हा।गतिपरिणामपदेसोगाहवग्गणाठाणमप्पबहुं॥१॥सेवंभंते! २!त्ति ॥सूत्रम् 175 // चउत्थसए दसमो उद्देसो समत्तो॥४-१०॥चउत्थं सयं समत्तं // 4 // से नूण मित्यादि, तारूवत्ताए त्ति तद्रूपतया नीललेश्यास्वभावेन, एतदेव व्यनक्ति तावण्णत्ताए त्ति तस्या इव नीललेश्याया इव वर्णो यस्याः सा तद्वर्णा तद्भावस्तत्ता तया तद्वर्णतया, एवं चउत्थो उद्देसओ, इत्यादिवचनादेवं द्रष्टव्यं तागंधत्ताए तारसत्ताए। ताफासत्ताए भुजो 2 परिणमति?, हंता गोयमा! कण्हलेसा नीललेसं पप्प तारूवत्ताए 5 भुजो 2 परिणमति, अयमस्य भावार्थः यदा कृष्णलेश्यापरिणतो जीवो नीललेश्यायोग्यानि द्रव्याणि गृहीत्वा कालं करोति तदा नीललेश्यापरिणत उत्पद्यते जल्लेसाई दव्वाई परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेसे उववज्जइ ति वचनात्, अतः कारणमेव कार्यं भवति, कण्हलेसा नीललेसं पप्पे त्यादि तुल कृष्णनीललेश्ययोर्भेदपरमुपचारादुक्तमिति, से केण• भंते! एवं वु. किण्हलेसा नीललेसं पप्प तारूवत्ताए 5 भुजो 2 परिणमइ?, गोयमा! से जहाणामए- खीरे दूसिं पप्प (तक्रमित्यर्थः) सुद्धे वा वत्थे रागं पप्प तारूवत्ताए भुजो 2 परिणमइ, से एएणट्टेणं गोयमा! एवं वु. कण्हलेसे त्यादि, एतेनैवाभिलापेन नीललेश्या कापोती कापोती तैजसीं तैजसी पद्मां पद्मा शुक्लां प्राप्य तद्रूपत्वादिना॥ परिणमतीति वाच्यम्, अथ कियहूरमयमुद्देशको वाच्यः? इत्याह जावे त्यादि परिणामे त्यादिद्वारगाथोक्तद्वारपरिसमाप्ति
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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