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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 310 // पा० णोजाणं पा०१अत्थेगइए जाणं पा० नो देवं पा०२ अत्थेगइए देवंपिपा. जाणंपिपा०३ अत्थेगइएनो देवं पा० नोजाणं पा० 3 शतके 4 // 2 अणगारे णं भंते! भावि० देविं वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहयं जाणरूवेणं जायमाणं जा० पा०? गोयमा! एवं चेव // 3 | उद्देशक: 4 अनगारोजानीअणगारेणं भंते! भावि० देवं सदेवीयं वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहयं जाणरूवेणं जायमाणं जा० पा०?, गोयमा! अत्थेगइए देवं यादधिकारः। सदेवीयं पा० नो जाणं पा०, एएणं अभिलावेणं चत्तारि भंगा 4 // 4 अणणं भंते! भावि रुक्खस्स किं अंतो पा० बाहिं पा० सूत्रम् 156 अनगारो चउभंगो। एवं किं मूलं पा० कंदं पा०?, चउभंगो, मूलं पा० खंधं पा० चउभंगो, एवं मूलेणं बीजं संजोएयव्वं, एवं कंदेणवि समं देवदेवीतधासंजो० जाव बीयं, एवं जाव पुप्फेण समं बीयं संजो० ॥५अणणं भंते! भावि० रुक्खस्स किं फलं पा० बीयं पा०?, चउभंगो॥ नादिवृक्ष मूलादि सूत्रम् 156 // पश्यतीत्यादि 1-2-3 अणगारे ण मित्यादि, तत्र भावियप्प त्ति भावितात्मा, संयमतपोभ्यामेवंविधानामनगाराणां हि प्रश्नाः / प्रायोऽवधिज्ञानादिलब्धयोभवन्तीतिकृत्वा भावितात्मेत्युक्तम्, विउब्वियसमुग्घाएणंसमोहयं ति विहितोत्तरवैक्रियशरीरमित्यर्थः / जाणरूवेणं ति यानप्रकारेण शिबिकाद्याकारवता वैक्रियविमानेनेत्यर्थः, जायमाणं ति यान्तं गच्छन्तम्, जाणइ त्ति ज्ञानेन पासइ त्ति दर्शनेन?, उत्तरमिह चतुर्भङ्गी, विचित्रत्वादवधिज्ञानस्येति। 4 अंतो ति मध्यं काष्ठसारादि, बाहिं ति बहिर्वति त्वपत्रसञ्चयादि, एवं मूलेण मित्यादि, एव / >>>>>>>>33 मिति मूलकन्दसूत्राभिलापेन मूलेन सह» कन्दादिपदानि वाच्यानि यावबीजपदम्, तत्र orrommmmmmmmmmmm मलं१कन्दः २स्कन्धः३त्वक 4 शाखा 5 // 310 // द्विकसंयोगाः 45 15 >>
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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