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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-१ // 288 // रत्ता वग्गइ रत्ता गज्जइ रत्ता हयहेसियं करेइ रत्ता हत्थिगुलगुलाइयं करेइ रत्ता रहघणघणाइयं करेइ रत्ता पायदद्दरगं करेइ रत्ता भूमिचवेडयंदलयइ रत्तासीहणादं नदइ रत्ता उच्छोलेइ रत्ता पच्छोलेइ रत्ता तिपइंछिंदइ रत्ता वामं भुयं ऊसवेइ रत्ता दाहिणहत्थपदेसिणीए य अंगुट्ठणहेण य वितिरिच्छमुहं विडंबेइ रत्ता महया र सद्देणं 2 कलकलरवेणं करेइ, एगे अबीए फलिहरयणमायाए उडे वेहासं उप्पड़ए, खोभंते चेव अहेलोयं कंपेमाणे च मेयणितलं आकर्टे (साकड) तेव तिरियलोयं फोडेमाणेव अंबरतलं कत्थइ गजंतो कत्थइ विजुयायंते कत्थइ वासंवासमाणे कत्थइरउग्घायं पकरेमाणे कत्थइ तमुक्कायंपकरेमाणे वाणमंतरदेवे वित्तासेमाणे जोइसिए देवे दुहा विभयमाणे 2 आयरक्खे देवे विपलायमाणे 2 फलिहरयणं अंबरतलंसि वियट्टमाणे 2 विउज्झाएमाणे 2 ताए उक्किट्ठाए जाव तिरियमसंखेजाणंदीवसमुद्दाणं मज्झं मज्झेणं वीयीवयमाणे 2 जेणेव सोहम्मे कप्पे जे० सोहम्मवडेंसए विमाणे जे० सभासुधम्मा तेणेव उवागच्छइ रत्ता एणं पायं पउमवरवेइयाए करेइ एगं पायं सभाए सुहम्माए करेइ फलिहरयणेणं महया 2 सद्देणं तिक्खुत्तो इंदकीलं आउडेइ रत्ता एवं व०- कहिणं भो! सक्के 3? कहिणंताओ चउरासीइ सामाणियसाहस्सीओ? जाव कहिणं ताओ चत्तारि चउरासीइओ आयरक्खदेवसाहस्सीओ? कहिणंताओ अणेगाओ अच्छराकोडीओ अज्ज हणामि अज्ज महेमि अज्ज वहेमि अज्ज ममं अवसाओ अच्छराओ वसमुवणमंतु त्तिकटुतं अणिटुं अकंतं अप्पियं असु० अमणु० अमणा० फरुसं गिरं निसिरइ, तएणं से सक्के 2 देवराया तं अणिटुंजाव अमणामं अस्सुयपुव्वं फरुसं गिरं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निडाले साहटु चमरं 3 एवं व०- हं भो चमरा! असुरिंदा! असुरराया! अपत्थियपत्थया! जाव हीणपुन्नचाउद्दस्सा अजं न भवसि नहि ते सुहमत्थी त्तिकट्ठ तत्थेव सीहासणवरगए वजं परामुसइ रत्ता तंजलंतं फुडंतं तडतडतं उक्कासहस्साई विणिम्मुयमाणं जालासहस्साई पमुंचमाणं इंगालसहस्साईपविक्खिरमाणं 2 फुलिंगजालामालासहस्सेहिं चक्खुविक्खेवदिट्ठिपडिघायं पकरेमाणं 3 शतके उद्देशक:२ सूत्रम् 144 चमरेन्द्रजीवपूरणस्य दानमय्याप्रव्रज्या। असुरेन्द्रत्वप्राप्ति। सौधर्मेन्द्रसंप्रेक्षणं सुंसुमारपुरे छास्थी श्रीवीरंनिश्रयोोत्पातः वजनिःसृजनं भयाच्छ्री श्रीवीरपादयोः समवपतनमादि। // 288 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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