________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 281 // 30 अत्थिणं भंते! तेसिं सक्कीसाणाणं देविंदाणं देवराईणं विवादा समुप्पखंति ?, हता! अत्थि / 31 से कहमिदाणिं पकरेंति?, गोयमा! ताहे चेवणं ते सक्तीसाणा देविंदा देवरायाणो सणंकुमारं देविंदं देवरायं मणसीकरेंति, तएणं से सणंकुमारे देविंदे देवराया तेहिं सक्कीसाणेहिं देविंदेहिं देवराईहिं मणसीकए समाणे खिप्पामेव सक्तीसाणाणं देविंदाणं देवराईणं अंतियं पाउन्भवति, जं से वदइ तस्स आणाउववायवयणनिद्देसे चिटुंति // सूत्रम् 140 // 32 सणंकुमारेणं भंते ! देविंदे 2 किं भवसिद्धिए अभवसिद्धिए सम्मद्दिट्ठी मिच्छद्दिट्टी परित्तसंसारए अणंतसंसारए सुलभबोहिए दुलभबोहिए आराहए विराहए चरिमे अचरिमे?, गोयमा! सणंकुमारे णं दे० देवराया भवसि० नो अभवसिद्धीए, एवं सम्मट्ठिी परित्तसंसारए सुलभबोहिए आराहए चरिमे पसत्थं नेयव्वं / 33 से केणटेणं भंते!, गोयमा! सणंकुमारे दे. देवराया बहूणं समणाणं ब० समणीणं ब० सावयाणं ब० सावियाणं हियकामए सुहकामए पत्थकामए आणुकंपिए निस्सेयसिए हियसुहनिस्सेसकामए, से तेणटेणं गोयमा! सणंकुमारेणं भवसि. जाव नो अचरिमे / 34 सणंकुमारस्सणं भंते! दे०२ केवतियं कालं ठिती प०?, गोयमा! सत्त सागरोवमाणि ठिती प० / 35 से णं भंते! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव कहिं उववन्जिहिति?, गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं करेहिति, सेवं भंते!२! / गाहाओ- छट्ठट्टममासो अद्धमासोवासाइं अट्ठ छम्मासा। तीसगकुरुदत्ताणं तवभत्तपरिण्णपरियाओ॥१॥ उच्चत्तविमाणाणं पाउब्भव पेच्छणा य संलावे / किंचि विवादुप्पत्ती सणंकुमारे य भवियव्वं (तं) // 2 // सूत्रम् 141 // मोया समत्ता / तईयसए पढमो उद्देसो समत्तो // 3-1 // उच्चतरा चेव त्ति, उच्चत्वं प्रमाणत उन्नयतरा चेव त्ति, उन्नतत्वं गुणतः, अथवोच्चत्वं प्रासादापेक्षम्, उन्नतत्वं तु प्रासादपीठापेक्षमिति, यच्चोच्यते पंचस (य)उच्चत्तेणं आइमकप्पेसु होंति उ विमाण त्ति तत्परिस्थूलन्यायमङ्गीकृत्यावसेयम्, तेन 3 शतके उद्देशकः१ कीशी चमरविकुर्वणा शक्ति : / सूत्रम् 140 तयोर्विवादादि प्रश्नाः / सूत्रम् 141 सनत्कुमारस्य भवसिद्धिकत्वस्थित्यादिप्रश्नाः।