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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 255 // असंखेन्जइभागं फुसइ जाव सव्वं फु०?, गोयमा! संखेज्जइभागं फु० णो असंखेजइ भागं फु० नो संखेल्जे० नो असंखेल्जे० नो सव्वं फुसइ, उवासंतराइंसव्वाईजहा रयणप्पभाए पुढवीए वत्तव्वया भणिया, एवं जाव अहेसत्तमाए, जंबूद्दीवाइया दीवालवणसमुद्दाइया समुद्दा, एवं सोहम्मे कप्पे जाव ईसिपम्भारापुढवीए, एते सव्वेऽवि असंखेजतिभागं फु०, सेसा पडिसेहेयव्वा / एवं अधम्मत्थिकाए, एवं लोयागासेवि, 76 गाहा- पुढवोदहीघणतणुकप्पा गेवेजणुत्तरा सिद्धी / संखेजतिभागं अंतरेसुसेसा असंखेजा ॥१॥सूत्रम् 125 // 2-10 // बितियं सयं समत्तं // // 2 // 73-75 इमा णं भंत इत्यादि, इह प्रतिपृथिवि पञ्च सूत्राणि देवलोकसूत्राणि द्वादश ग्रैवेयकसूत्राणि त्रीणि, अनुत्तरेषत्प्राग्भारासूत्रे द्वे एवं द्विपञ्चाशत्सूत्राणि धर्मास्तिकायस्य किं सङ्खयेयं भागंस्पृशन्तीत्याद्यभिलापेनावसेयानि, तत्रावकाशान्तराणि सडयेयभागं स्पृशन्ति, शेषास्त्वसद्धयेयभागमिति निर्वचनम्, एतान्येव सूत्राण्यधर्मास्तिकायलोकाकाशयोरिति // 76 इहोक्तार्थसङ्ग्रहगाथा भाविताथैवेति // 125 // द्वितीयशते दशमः // 2-10 // श्रीपञ्चमाङ्गे गुरुसूत्रपिण्डे, शतं स्थितानेकशते द्वितीयम्। अनैपुणेनापि मया व्यचारि, सूत्रप्रयोगज्ञवचोऽनुवृत्त्या ॥१॥इति // 2 शतके उद्देशक: 10 अस्तिकायाधिकारः। सूत्रम् 125 धर्मास्तिकायस्य रत्नप्रभापृथिव्यादीनां स्पर्शनाप्रश्नाः। | // इति श्रीमच्चन्द्रकुलनभोनभोमणिश्रीमदभयदेवाचार्यवर्यविहितविवरणयुतं श्रीमद्भगवतीवृत्तौ || द्वितीयं शतकं समाप्तम् / / 255 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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