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________________ श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 253 // 2 शतके उद्देशक: 10 | अस्तिकायाधिकारः। सूत्रम् 122 | अलोकाकाशे किंजीवः इत्यादिप्रश्नाः। सूत्रम् 123 धर्मास्तिकाय महत्वादि यथोर्ध्वलोकाकाशेन धर्मास्तिकायस्य देशः स्पृश्यत इत्यादिस्तदर्थमिति, अद्धासमय त्ति, अद्धा- कालस्तल्लक्षण: समय: क्षणोऽद्धासमयः, सचैक एव वर्तमानक्षणलक्षणः, अतीतानागतयोरसत्त्वादिति // 121 // कृतं लोकाकाशगतप्रश्नषट्कस्य निर्वचनम्, अथालोकाकाशं प्रति प्रश्नयन्नाह 67 अलोगागासेणं भंते! किंजीवा? पुच्छा तह चेव, गोयमा! नो जीवाजाव नो अजीवप्पएसा एगे अजीवदव्वदेसे अगुरुयलहुए अणंतेहिं अगुरुयलहुयगुणेहिं संजुत्ते सव्वागासे अणंतभागूणे ॥सूत्रम् 122 // 68 (लोयागासे णं भंते कतिवण्णे? पुच्छा, गोयमा अवण्णे अरसे अगंधे जाव अफासे एगे अजीवदव्वदेसे अगुरुअलहुए अणंतेहिं अगुरुअलहुअगुणेहिं संजुत्ते, सव्वागासस्स अणंतभागे) 69 धम्मत्थिकाए णं भंते! किं (के) महालए पण्णत्ते?, गोयमा! लोए लोयमेत्ते लोयप्पमाणे लोयंफुडे लोयं चेव फुसित्ता णं चिट्ठइ, एवं अहम्मत्थिकाए लोयागासे जीवत्थिकाए पोग्गलत्थिकाएपंच वि एक्काभिलावा ॥सूत्रम् 123 // 67 पुच्छा तह चेव त्ति यथा लोकप्रश्ने, तथाहि, अलोकाकासे णं भंते! किं जीवा जीवदेसा जीवप्पएसा अजीवा अजीवदेसा अजीवप्पएस त्ति। निर्वचनं त्वेषांषण्णामपि निषेधः, तथैगे अजीवदव्वदेसे त्ति, अलोकाकाशस्य देशत्वंलोकालोकरूपाकाशद्रव्यस्य भागरूपत्वात्, अगरुयलहुए त्ति गुरुलघुत्वाव्यपदेश्यत्वात्, अणंतेहिं अगुरुयलहुयगुणेहिं ति, अनन्तैः स्वपर्यायपरपर्यायरूपैर्गुणैः, अगुरुलघुस्वभावैरित्यर्थः, सव्वागासे अणंतभागूणे त्ति लोकाकाशस्यालोकाकाशापेक्षयानन्तभागरूपत्वादि // 122 // अथानन्तरोक्तान् धर्मास्तिकायादीन् प्रमाणतो निरूपयन्नाह 69 के महालए त्ति लुप्तभावप्रत्ययत्वानिर्देशस्य किं महत्त्वं प्रश्राः / // 253 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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