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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 247 // // द्वितीयशतके दशमोद्देशकः॥ अनन्तरं क्षेत्रमुक्तं तच्चास्तिकायदेशरूपमित्यस्तिकायाभिधानपरस्य दशमोद्देशकस्यादिसूत्रम् 53 कति णं भंते! अत्थिकाया प०?, गोयमा! पंच अस्थिकाया पण्णत्ता, तंजहा- धम्मत्थिकाए अधम्मत्थि० आगासस्थि० जीवत्थि० पोगलत्थि०॥५४ धम्मत्थि० भंते! कतिवन्ने कतिगंधे कतिरसे कतिफासे?, गोयमा! अवण्णे अगंधे अरसे अफासे अरूवे अजीवे सासए अवट्ठिए लोगदव्वे, 55 से समासओ पंचविहे प०, तंजहा- दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ गुणओ, द. णं धम्मत्थि० एगे दव्वे, खे० णं लोगप्पमाणमेत्ते, का० न कयाविन आसि न कयाइ नत्थि जाव निच्चे, भा० अवण्णे अगंधे अरसे अफासे, गु० गमणगुणे। अहम्मत्थि वि एवं चेव, नवरं गु० ठाणगुणे, आगासत्थि. वि एवं चेव, नवरं खे० णं आगासत्थि० लोयालोयप्पमाणमेत्ते अणंते चेव जाव गु० अवगाहणागुणे / 56 जीवत्थि० णं भंते! कतिवन्ने कतिगंधे कतिरसे कइफासे?, गोयमा! अवण्णे जाव अरूवी जीवे सासए अवट्ठिए लोगदव्वे, सेसमासओ पंचविहे प०, तंजहा- द. जाव गु०, द० णं जीवत्थि० अणंताई जीवदव्वाई, खे० लोगप्पमाणमेत्ते का० न कयाइन आसि जाव निच्चे, भा० पुण अवण्णे अगंधे अरसे अफासे, गुणओ उवओगगुणे। 57 पोग्गलत्थि० णं भंते! कतिवण्णे कतिगंधे० रसे० फासे?, गोयमा! पंचवण्णे पंचरसे दुगंधे अट्ठफासे रूवी अजीवे सासए अवट्ठिए लोगदव्वे, से समासओ पंचविहे प०, तंजहा- द. खे० का. भा० गु०, दव्वओणं पोग्गलत्थि० अणंताई दव्वाई, खे० लोयप्पमाणमेत्ते, कान कयाइन आसि जाव निच्चे, भा० वण्णमंते गंध० रस० फासमंते, गुणओ गहणगुणे / / सूत्रम् 118 // 58 एगे भंते! धम्मत्थिकायपदेसे धम्मत्थिकाएत्ति वत्तव्वं सिया?, गोयमा! णो इणढे समढे, एवं दोन्निवि तिन्निवि चत्तारिपंच छ सत्त अट्ठ नव दस संखेज्जा, असंखेज्जा 59 भंते! धम्मत्थिकायप्पएसा धम्मत्थिकाएत्ति व सिया?, गोयमा! णो इणढे समढे, 60 2 शतके उद्देशकः१० अस्तिकायाधिकारः। सूत्रम् 118 द्रव्यादित:धर्मास्तिका| यादि प्रश्नाः। | सूत्रम् 119 | एकप्रदेशोनधर्मास्तिकायादिवक्तव्यता प्रश्राः / // 247 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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