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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 202 // सोच्चा निसम्म हट्ठतुढे जाव हियए उठाए उढेइ 2 ता समणं भ० महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ रत्ता एवं व० सद्दहामि गंभंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! नि० पा०, रोएमि णं भंते! नि० पा०, अब्भुढेमिणं भंते! नि० पा०, एवमेयं भंते! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते! इ० पडि०मेयं भंते! से जहेयं तुब्भे वदह त्ति कट्ठ स० भ० महावीरं वं० नम० रत्ता उत्तरपुरच्छिमं दिसीभायं अवक्कमइ रत्ता तिदंडं च कुंडियं च जाव धाउरत्ताओ य एगंते एडेइ रत्ता जे० समणे भ० महावीरे ते. उवाग० २त्ता समणं भ०म० तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ करेइत्ता जाव नमंसित्ता एवं व०-आलित्ते णं भंते! लोए पलिते णं भं० लो० आ०प० भं० लो० जरामरणेण य, से जहानामए- केइ गाहावती आगारंसि झियायमाणंसि जे से तत्थ भंडे भवइ अप्पसारे मोल्लगरूए तंगहाय आयाए एगंतमंतं अवक्कमइत्ति, एस मे नित्थारिए समाणे पच्छा पुरा हियाए सुहाए खमाए निस्सेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ, एवामेव देवाणुप्पिया! मज्झवि आया एगे भंडे इढे कंते पिए मणुन्ने मणामे थेग्जे वेसासिए संमए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे माणं सीयं माणं उण्हंमा णं खुहा माणं पिवासा माणं चोरा माणं वाला माणं दंसा मा णं मसगा माणं वाइयपित्तियसंभियसंनिवाइयविविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु त्तिकट्टएस मे नित्थारिए समाणे परलोयस्स हियाए सुहाए खमाए नीसेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ, तं इच्छामिणं देवाणु! सयमेव मुंडावियं स० सेहावियंस० सिक्खावियं स० आयारगोयरं विणयवेणइयचरणकरणजायामायावत्तियं धम्ममाइक्खि। तएणंस० भ० महावीरे खंदयं कच्चा० सयमेव पव्वावेइ जाव धम्ममातिक्खड़, एवं देवाणु०! गंतव्वं एवं चिट्ठियव्वं एवं निसीति एवं तुयट्टि एवं भुंजि० एवं भासि० एवं उठाए पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं संजमेणं संजमियव्वं, अस्सिंचणं अटेणो किंचि विपमाइ० / तएणं से खंदए कच्चा० समणस्स भ० म० इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं सम्मं संपडिवज्जति तमाणाए तह ग० तह चिट्ठइ तह निसीयति तह तुयट्टइ तह भुं० तह भा० तह 2 शतके उद्देशकः१ उच्छ्वासः स्कन्दकश्च सूत्रम् 92 स्कन्दकचरितम्। प्रतिबोधः। धर्मनिशमि| तुमिच्छा। पर्षदि धर्मकथनं दीक्षायाचना दीक्षा नैर्ग्रन्थं च प्रवचनं पुरतः कृत्वा विहरणम्। // 202 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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