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________________ श्रीभगवत्या श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 198 // खं०!- मए एवं खलु चउव्विहा सिद्धी प०, तं०- दव्वओ 4,) द० णं एगा सिद्धी खे० णं सिद्धी पणयालीसं जोयणसयसहस्साई आयामविक्खंभेणं एगा जोयणकोडी बायालीसं च जोयणसयसहस्साई तीसंच जोयणसहस्साई दोन्नि य अउणापन्नजोयणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं अत्थि पुण से अंते, का० णं सिद्धी न कयावि न आसि, भा० य जहा लोयस्स तहा भाणियव्वा, तत्थ द० सिद्धी सअंता खे० सिद्धी सअंता का सिद्धी अणंता भा० सिद्धी अणंता / जेवि य ते खं! जाव किं अणंते सिद्धे तं चेव जावद० णंएगे सिद्धेसअंते, खे० सिद्धे असंखेजपएसिए असंखेजपदेसोगाढे, अत्थि पुण से अंते, का० णं सिद्धे सादीए अपज्जवसिए नत्थि पुण से अंते, भा० सिद्धे अणंता णाणप० अणंता दंसणप० जाव अणंता अगुरुलहुयप० नत्थि पुण से अंते, सेत्तं द० सिद्धे सअंते खे० सिद्धे सअंते का सिद्धे अणंते भा० सिद्धे अणंते / जेविय ते खं०! इमेयारूवे अन्भत्थिए चिंतिए जाव समुप्पजित्थाकेण वा मरणेणं मरमाणे जीवे वहति वा हायति वा?, तस्सवि य णं अयमढे एवं खलु खं०!- मए दुविहे मरणे प०, तंजहाबालमरणे य पंडियमरणे य, से किं तं बालम०?, 2 दुवालसविहे प०, तं- वलयम० वसट्टम० अंतोसल्लम० तब्भवम० गिरिपडणे तरुपडणे जलप्पवेसे जलणप्प० विसभक्खणे सत्थोवाडणे वेहाणसे गिद्धपढे। इच्चेतेणंख! दुवालसविहेणं बालमरणेणं मरमाणे जीवे अणंतेहिं नेरइयभवग्गहणेहिं अप्पाणं संजोएइ तिरियमणुदेव० अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियट्टइ, से त्तं मरमाणे वड्डइ 2, से त्तं बालम० / से किं तं पंडियम०?, 2 दुविहे प०, तं०- (ग्रं० 1000) पाओवगमणे य भत्तपच्चक्खाणे यासे किंतं पाओवगमणे?, 2 दुविहे प०, तं०- नीहारिमेय अनीहारिमेय नियमा अप्पडिकमे, सेत्तं पाओवगमणे। से किंतं भत्तपच्चक्खाणे?, 2 दुविहे पं०, तं०- नीहारिमे य अनीहारिमे य, नियमासपडिक्कमे, सेत्तं भत्तपञ्चक्खाणे। इच्चेते खंदया! दुविहेणं पंडियमरणेणं मरमाणे जीवे अणंतेहिं नेरइयभवग्गहणेहिं अप्पाणं विसंजोएइ जाव वीईवयति, सेत्तं मरमाणे हायइ, 2 से २शतक उहंशकः१ उच्छवासः स्कन्दकश्व सूत्रम् 91 श्रीवीरस्यादारादिशरीर प्रेक्ष्य हर्षः पर्युपासना। (ज्ञानेन ज्ञात्वा) श्रीवीरस्य पृच्छापूर्व द्रव्यादितः सान्ततादि शङ्कानिरासन वलन् वशात्तादि द्वादशमरण प्रश्ननिराकरणम्। // 198 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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